





























आज तक के सबसे ख़राब फिल्म सीक्वल
- ख़राब सीक्वल बनाना दशकों से हॉलीवुड में एक ट्रेंड रहा है। उस डायरेक्टर की तारीफ़ की जानी चाहिए, जो अपनी आर्ट की इज़्ज़त करते हुए सही समय पर फिल्में बनाना छोड़ देता है। मानते हैं कि फिल्म का सीक्वेल बनाए जाने से पैसा कमाया जा सकता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सीक्वल फिल्म की स्टोरी भी उतनी ही बेहतर होगी। ख़राब सीक्वल फिल्म के नमूने जब-तब बड़े पर्दे पर देखने को मिल जाते हैं। कहावत है ना, सोया हुआ हुआ शेर सुंदर दिखाई देता है। लेकिन हॉलीवुड के कुछ डायरेक्टर्स ने इस कहावत के बिल्कुल उलट काम किया। इस गैलरी पर क्लिक करें और जानें कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में, जिनके सीक्वल सबसे घटिया और बेकार साबित हुए।
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'ए गुड डे टू डाई हार्ड' (2013)
- हमें लगा था कि 'लिव फ्री ओर डाई हार्ड' से बेकार फिल्म नहीं हो सकती। लेकिन, 'डाई हार्ड' फ्रेंचाइज़ी के डायरेक्टर्स ने हमें ग़लत साबित कर दिया। 'डाई हार्ड' सीरीज़ की फिल्में बनना कब का बंद हो जाना चाहिए था। फिल्म देखकर साफ पता चलता है कि एक्टर 'ब्रूस विलीज़' का भी अब इस सीरीज़ की फिल्में करने का मन नहीं है।
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'द हैंगओवर- पार्ट II' (2011)
- 'द हैंगओवर- पार्ट II' की कहानी हुबहू पहली हैंगओवर जैसी है। बस फर्क इतना है कि इस फिल्म की लोकेशन अबकी बार थाईलैंड है। इसका सीक्वेल बनाना, एक हिट फिल्म को भुनाने और पैसे कमाने की बेहद ख़राब कोशिश थी।
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'ज़ूलैंडर 2' (2016)
- 'ज़ूलैंडर' एक क्लासिक कॉमेडी फिल्म है। भला 15 साल बाद इसका सीक्वेल बनाने का कोई तुक बनता है। और तो और रही-सही कसर सेलिब्रिटीज़ ने इस फिल्म में शामिल होकर पूरी कर दी।
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'बिग मम्मा'ज़ हाऊस 2' (2006)
- 'बिग मम्मा'ज़ हाऊस' एक शानदार कॉमेडी फिल्म थी, लेकिन फ्रेंचाइज़ी में बदलकर डायरेक्टर्स ने इसका कबाड़ा कर दिया। 'बिग मम्मा'ज़ हाऊस 2' की रेटिंग बहुत ही ख़राब थी। इस फ्रेंचाइज़ी का तीसरा सीक्वल, तो दूसरी फिल्म से भी बेकार था।
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'द नेक्स्ट कराटे किड' (1994)
- 'कराटे किड' सीरीज़ की चौथी फिल्म 'द नेक्स्ट कराटे किड' एक बेकार सीक्वल फिल्म थी। पेट मॉरिटा और कम उम्र की हिलेरी स्वैंक की अच्छी एक्टिंग के बावजूद यह एक ख़राब सीक्वल साबित हुई।
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'रोबोकॉप 3' (1993)
- जैसा कि पता ही था, 'रोबोकॉप 3' रोबोकॉप ट्रायोलॉजी की सबसे ख़राब फिल्म निकली। तीसरी फिल्म तक आते-आते, सबसे पहली फिल्म की बेहतरीन कहानी का रंग उतर चुका था। यह बस 90 के दशक की एक्शन फिल्मों जैसी ही एक फिल्म थी, जिन फिल्मों में खूँखार विदेशी लोगों द्वारा चलाया जाने वाला एक गैंग लोगों को परेशान करता है।
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'स्केरी मूवी 5' (2015)
- 'स्केरी मूवी' अपने समय की बेहतरीन फिल्म थी। लेकिन पाँचवी फिल्म तक आते-आते यह सर का दर्द बन गई। इस फिल्म के बारे में एक फिल्म क्रिटिक ने लिखा था कि," यह फिल्म बहुत सारे जोक्स को मिलाकर बनी है। फिल्म में ये जोक्स देखकर मुझे हँसी नहीं आई। इससे ज़्यादा हँसी तो तब आई थी, जब सालों पहले ये जोक्स ट्विटर पर पढ़े थे।"
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'लिटिल फोकर्स' (2010)
- इस सीरीज़ की 'मीट द पैरेंट्स' एक शानदार फिल्म थी। जबकि इसकी सीक्वल 'मीट द फोकर्स' बहुत ख़राब फिल्म थी। इसकी अगली सीक्वल 'लिटिल फोकर्स' देखना तो दर्शकों की भारी बेइज़्ज़ती थी।
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'जॉज़: द रिवेंज' (1987)
- 'जॉज़' सीरीज़ की आख़िरी फिल्म ने इसके ताबूत में आख़िरी कील ठोंक दी। जो शोहरत इस सीरीज़ की पहली फिल्म ने हासिल की थी, उसे इसके सीक्वल ने बर्बाद कर दिया। माइकेल केन भी उस शोहरत को बचाने में कामयाब नहीं हो पाए।
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'द मैट्रिक्स रीलोडेड' (2003)
- 'द मैट्रिक्स' एक ऐसी सनसनीख़ेज़ फिल्म थी, जिसकी बराबरी कोई फिल्म नहीं कर सकती थी। इसके सीक्वल इतने ख़राब नहीं हैं, लेकिन वो पहली फिल्म जैसे नहीं है। इसके सीक्वल देखकर दर्शकों को निराशा होती है।
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'ट्रांसफॉर्मर्स: द लास्ट नाइट' (2017)
- मार्क वाह्लबर्ग और स्टेनले टुकी की मौजूदगी के बावजूद, माइकल बे की ट्रांसफॉर्मर्स सीरीज़ की पाँचवी फिल्म बुरी तरह फ्लॉप रही। बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म बेहतर रही, जबकि क्रिटिक्स ने इसे फ्लॉप का दर्जा दिया।
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'द गॉडफादर:पार्ट III' (1990)
- 'द गॉडफादर:पार्ट III' को किसी भी तरह से अब तक के सबसे ख़राब सीक्वल के दायरे में नहीं रखा जा सकता। लेकिन, क्योंकि हम गॉडफादर सीरीज़ की पहली दो बेहतरीन फिल्में देख चुके हैं, तो यह तीसरी फिल्म हमें निराश करती है।
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'ब्रिजेट जोंस: द एज ऑफ रीज़न' (2004)
- डेटिंग के लूपहोल्स पर बेस्ड इस फिल्म सीरीज़ की दूसरी फिल्म एकदम अजीब-ओ-गरीब मोड़ ले लेती है। 'ब्रिजेट जोंस: द एज ऑफ रीज़न' में जोंस अपने सूटकेस में कोकीन की स्मगलिंग करते हुए ग़लती से थाईलैंड पहुँच जाती है। इस फिल्म को देखकर ऐसा लगता है कि डायरेक्टर के पास आइडियाज़ ख़त्म हो गए थे।
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'इंडियाना जोन्स एंड द किंगडम ऑफ द क्रिस्टल स्कल' (2008)
- इंडियाना जोंस सीरीज़ की चौथी फिल्म ने इंडी के किरदार को एक मज़ाक़ में बदल दिया। इस फिल्म में वो एक ऐसा किरदार है, जिसका दिमाग़ हर समय खिसका हुआ रहता है। इस फिल्म के किरदार बूढ़े आदमी के जोक्स बहुत ऊबाऊ थे।
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'सुपरमैन IV: द क्वेस्ट फॉर पीस' (1987)
- 'सुपरमैन IV: द क्वेस्ट फॉर पीस' थीम बेस्ड फिल्म थी। यह फिल्म शीत युद्ध समाप्त होने के बाद के समय पर आधारित थी। इस फिल्म में सुपरमैन दुनिया भर के सभी न्यूक्लियर वेपंस को इकट्ठा कर बर्बाद करने के मिशन पर है। यह फिल्म बोरिंग थी और इसके स्पेशल इफेक्ट भी घटिया थे। यह फिल्म एक ऐसी फिल्म सीरीज़ को और ख़राब करने की कोशिश भर थी, जो पहले से ही ख़राब हालत में थी।
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15 / 30 Fotos
'टर्मिनेटर जेनेसिस' (2015)
- टर्मिनेटर सीरीज़ की पाँचवी फिल्म में ऑर्नोल्ड श्वार्जनेगर को एमिलिया क्लार्क के साथ एक ख़तरनाक मिशन पूरा करते हुए दिखाया गया था। लेकिन यह फिल्म किसी भी पैमाने पर खरी नहीं उतरती। पहली फिल्म में मौजूद धुआँधाड़ एक्शन इस फिल्म से गायब था।
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'स्पाइडर मैन 3' (2007)
- 'स्पाइडर मैन 3' को सैम रैमी ने डायरेक्ट किया था। टॉबी मैग्वायर की एक्टिंग से सजी यह फिल्म स्पाइडर मैन सीरीज़ की आख़िरी फिल्म थी। लेकिन यह फिल्म दर्शकों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं थी।
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'इंडिपेडेंस डे: रिसर्जेंस' (2018)
- विल स्मिथ इस फिल्म में एक्टर के तौर पर शामिल नहीं हुए थे। उन्होंने यह ज़िम्मेदारी जेफ गोल्डब्लम और लियाम हैम्सवर्थ पर छोड़ दी थी। ऐसा लगता है कि उनका फैसला सही था। 2018 में आई इस फिल्म की फिल्म-क्रिटिक्स ने धज्जियाँ उड़ा दीं।
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18 / 30 Fotos
'द लॉस्ट वर्ल्ड: जुरासिक पार्क' (1997)
- 'द लॉस्ट वर्ल्ड: जुरासिक पार्क' स्टीवन स्पीलबर्ग ने डायरेक्ट की थी। यह जुरासिक पार्क सीरीज़ की आख़िरी फिल्म थी। लेकिन उनके जैसा बेहतरीन डायरेक्टर भी इस सीरीज़ को लंबा नहीं खींच सका।
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'ब्ल्यूज़ ब्रॉदर्स 2000' (1998)
- निश्चित रूप से 'द ब्ल्यूज़ ब्रॉदर्स' अब तक की सबसे शानदार म्यूज़िकल कॉमेडी फिल्म है। बदक़िस्मती से, इस शानदार फिल्म को इसके घटिया लिखे हुए सीक्वल ने बर्बाद कर दिया।
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'ग्रीस 2' (1982)
- ग्रीस को बेहतरीन स्क्रिप्ट, आसान और म्यूज़िकल नंबर्स के लिए जाना जाता है। लेकिन ग्रीस-2 ने इस फिल्म की तस्वीर बिगाड़ दी और दर्शकों को यह मानने पर मजबूर कर दिया कि यह एक घटिया फिल्म है।
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'डैडी डे कैंप' (2007)
- 2003 की फिल्म 'डैडी डे केयर' का यह सीक्वल देखने में साफ पता चलता था कि इसे पिछली फिल्म की सक्सेस को भुनाकर पैसे कमाने के लिए बनाया गया है। इस फिल्म का ह्यूमर पूरी तरह किरदारों के हाव-भाव पर आधारित है और उससे हँसी भी नहीं आती।
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'पुलिस अकेडमी 4: सिटीज़ंस ऑन पेट्रोल' (1987)
- 'पुलिस अकेडमी 4: सिटीज़ंस ऑन पेट्रोल' मशहूर पुलिस अकेडमी सीरीज़ की चौथी फिल्म है। यह फिल्म देखते हुए हर जगह आने वाली ऊल-जलूल घटनाओं का अंदाज़ा पहले से ही हो जाता है।
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23 / 30 Fotos
'सन ऑफ द मास्क' (2005)
- इस फिल्म में जेमी कैनेडी, जिम कैरे की तरह एक्टिंग नहीं कर पाए। इसी एक्टिंग के चलते उन्हें रैज़ी अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया। यह अवॉर्ड सबसे ख़राब फिल्मों और ख़राब एक्टिंग के लिए दिया जाता है।
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24 / 30 Fotos
'डंब एंड डंबर: व्हेन हैरी मेट लॉयड' (2003)
- शायद 'डंब एंड डंबर' के राइटर नहीं चाहते थे कि उनकी फिल्म के एक्टर आगे बढ़ें। इसलिए उन्होंने इस फिल्म के राइट्स प्रीक्वल के लिए स्टूडियो को सौंप दिए, जिससे स्टूडियो किसी को भी इसे बनाने का प्रोजेक्ट दे सकता था। इसका अंजाम भी बिल्कुल वही हुआ, जो आप सोच रहे हैं।
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25 / 30 Fotos
'बैटमेन एंड रॉबिन' (1997)
- 1990 के दशक की बैटमैन फिल्में वाकई बहुत अजीब थीं, लेकिन इस फिल्म ने हद कर दी। इस फिल्म में ऑर्नोल्ड श्वार्जनेगर को चांदी की जीवित मूर्ति 'मिस्टर फ्रीज' की भूमिका निभाने के लिए 25 मिलियन यूएस डॉलर दिए गए थे। लेकिन ऑर्नोल्ड भी इसे फ्लॉप होने से नहीं बचा सके।
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26 / 30 Fotos
'चीपर बाइ द डज़न 2' (2005)
- 'चीपर बाइ द डज़न 2' ऑरिजिनल फिल्म के रीमेक का सीक्वल था। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि फिल्म देखने वालों के पहले से ही पता था कि कहाँ पर क्या होने वाला है। स्टीव मार्टिन और यूजीन लेवी जैसी एक्टर का टैलेंट भी इस फिल्म में बर्बाद हो गया।
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27 / 30 Fotos
'बेसिक इंस्टिक्ट 2' (2006)
- 'बेसिक इंस्टिक्ट' ऐसी फिल्म है, जिसे कल्चरल रेफरेंस के तौर पर याद किया जाता है। लेकिन, 'बेसिक इंस्टिक्ट 2' ऐसी फिल्म साबित नहीं हुई। 14 सालों बाद डायरेक्टर्स ने फिर से कोशिश की और इसका सीक्वल बनाया, लेकिन वो कामयाब नहीं हो सके।
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'बुक ऑफ शैडोज़: ब्लेयर विच' (2000)
- 'द ब्लेयर विच प्रॉजेक्ट' हॉरर फिल्मों की कैटेगेरी में बेहतरीन फिल्म है। इसका सीक्वेल महज पैसे की बर्बादी थी। पहली फिल्म की तरह इस फिल्म में कुछ भी नया नहीं था। इसमें जो भी हॉरर सीन थे, वो पुरानी हॉरर फिल्मों की नकल थे।
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आज तक के सबसे ख़राब फिल्म सीक्वल
- ख़राब सीक्वल बनाना दशकों से हॉलीवुड में एक ट्रेंड रहा है। उस डायरेक्टर की तारीफ़ की जानी चाहिए, जो अपनी आर्ट की इज़्ज़त करते हुए सही समय पर फिल्में बनाना छोड़ देता है। मानते हैं कि फिल्म का सीक्वेल बनाए जाने से पैसा कमाया जा सकता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सीक्वल फिल्म की स्टोरी भी उतनी ही बेहतर होगी। ख़राब सीक्वल फिल्म के नमूने जब-तब बड़े पर्दे पर देखने को मिल जाते हैं। कहावत है ना, सोया हुआ हुआ शेर सुंदर दिखाई देता है। लेकिन हॉलीवुड के कुछ डायरेक्टर्स ने इस कहावत के बिल्कुल उलट काम किया। इस गैलरी पर क्लिक करें और जानें कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में, जिनके सीक्वल सबसे घटिया और बेकार साबित हुए।
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'ए गुड डे टू डाई हार्ड' (2013)
- हमें लगा था कि 'लिव फ्री ओर डाई हार्ड' से बेकार फिल्म नहीं हो सकती। लेकिन, 'डाई हार्ड' फ्रेंचाइज़ी के डायरेक्टर्स ने हमें ग़लत साबित कर दिया। 'डाई हार्ड' सीरीज़ की फिल्में बनना कब का बंद हो जाना चाहिए था। फिल्म देखकर साफ पता चलता है कि एक्टर 'ब्रूस विलीज़' का भी अब इस सीरीज़ की फिल्में करने का मन नहीं है।
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'द हैंगओवर- पार्ट II' (2011)
- 'द हैंगओवर- पार्ट II' की कहानी हुबहू पहली हैंगओवर जैसी है। बस फर्क इतना है कि इस फिल्म की लोकेशन अबकी बार थाईलैंड है। इसका सीक्वेल बनाना, एक हिट फिल्म को भुनाने और पैसे कमाने की बेहद ख़राब कोशिश थी।
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'ज़ूलैंडर 2' (2016)
- 'ज़ूलैंडर' एक क्लासिक कॉमेडी फिल्म है। भला 15 साल बाद इसका सीक्वेल बनाने का कोई तुक बनता है। और तो और रही-सही कसर सेलिब्रिटीज़ ने इस फिल्म में शामिल होकर पूरी कर दी।
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'बिग मम्मा'ज़ हाऊस 2' (2006)
- 'बिग मम्मा'ज़ हाऊस' एक शानदार कॉमेडी फिल्म थी, लेकिन फ्रेंचाइज़ी में बदलकर डायरेक्टर्स ने इसका कबाड़ा कर दिया। 'बिग मम्मा'ज़ हाऊस 2' की रेटिंग बहुत ही ख़राब थी। इस फ्रेंचाइज़ी का तीसरा सीक्वल, तो दूसरी फिल्म से भी बेकार था।
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'द नेक्स्ट कराटे किड' (1994)
- 'कराटे किड' सीरीज़ की चौथी फिल्म 'द नेक्स्ट कराटे किड' एक बेकार सीक्वल फिल्म थी। पेट मॉरिटा और कम उम्र की हिलेरी स्वैंक की अच्छी एक्टिंग के बावजूद यह एक ख़राब सीक्वल साबित हुई।
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'रोबोकॉप 3' (1993)
- जैसा कि पता ही था, 'रोबोकॉप 3' रोबोकॉप ट्रायोलॉजी की सबसे ख़राब फिल्म निकली। तीसरी फिल्म तक आते-आते, सबसे पहली फिल्म की बेहतरीन कहानी का रंग उतर चुका था। यह बस 90 के दशक की एक्शन फिल्मों जैसी ही एक फिल्म थी, जिन फिल्मों में खूँखार विदेशी लोगों द्वारा चलाया जाने वाला एक गैंग लोगों को परेशान करता है।
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'स्केरी मूवी 5' (2015)
- 'स्केरी मूवी' अपने समय की बेहतरीन फिल्म थी। लेकिन पाँचवी फिल्म तक आते-आते यह सर का दर्द बन गई। इस फिल्म के बारे में एक फिल्म क्रिटिक ने लिखा था कि," यह फिल्म बहुत सारे जोक्स को मिलाकर बनी है। फिल्म में ये जोक्स देखकर मुझे हँसी नहीं आई। इससे ज़्यादा हँसी तो तब आई थी, जब सालों पहले ये जोक्स ट्विटर पर पढ़े थे।"
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'लिटिल फोकर्स' (2010)
- इस सीरीज़ की 'मीट द पैरेंट्स' एक शानदार फिल्म थी। जबकि इसकी सीक्वल 'मीट द फोकर्स' बहुत ख़राब फिल्म थी। इसकी अगली सीक्वल 'लिटिल फोकर्स' देखना तो दर्शकों की भारी बेइज़्ज़ती थी।
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'जॉज़: द रिवेंज' (1987)
- 'जॉज़' सीरीज़ की आख़िरी फिल्म ने इसके ताबूत में आख़िरी कील ठोंक दी। जो शोहरत इस सीरीज़ की पहली फिल्म ने हासिल की थी, उसे इसके सीक्वल ने बर्बाद कर दिया। माइकेल केन भी उस शोहरत को बचाने में कामयाब नहीं हो पाए।
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'द मैट्रिक्स रीलोडेड' (2003)
- 'द मैट्रिक्स' एक ऐसी सनसनीख़ेज़ फिल्म थी, जिसकी बराबरी कोई फिल्म नहीं कर सकती थी। इसके सीक्वल इतने ख़राब नहीं हैं, लेकिन वो पहली फिल्म जैसे नहीं है। इसके सीक्वल देखकर दर्शकों को निराशा होती है।
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'ट्रांसफॉर्मर्स: द लास्ट नाइट' (2017)
- मार्क वाह्लबर्ग और स्टेनले टुकी की मौजूदगी के बावजूद, माइकल बे की ट्रांसफॉर्मर्स सीरीज़ की पाँचवी फिल्म बुरी तरह फ्लॉप रही। बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म बेहतर रही, जबकि क्रिटिक्स ने इसे फ्लॉप का दर्जा दिया।
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'द गॉडफादर:पार्ट III' (1990)
- 'द गॉडफादर:पार्ट III' को किसी भी तरह से अब तक के सबसे ख़राब सीक्वल के दायरे में नहीं रखा जा सकता। लेकिन, क्योंकि हम गॉडफादर सीरीज़ की पहली दो बेहतरीन फिल्में देख चुके हैं, तो यह तीसरी फिल्म हमें निराश करती है।
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'ब्रिजेट जोंस: द एज ऑफ रीज़न' (2004)
- डेटिंग के लूपहोल्स पर बेस्ड इस फिल्म सीरीज़ की दूसरी फिल्म एकदम अजीब-ओ-गरीब मोड़ ले लेती है। 'ब्रिजेट जोंस: द एज ऑफ रीज़न' में जोंस अपने सूटकेस में कोकीन की स्मगलिंग करते हुए ग़लती से थाईलैंड पहुँच जाती है। इस फिल्म को देखकर ऐसा लगता है कि डायरेक्टर के पास आइडियाज़ ख़त्म हो गए थे।
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'इंडियाना जोन्स एंड द किंगडम ऑफ द क्रिस्टल स्कल' (2008)
- इंडियाना जोंस सीरीज़ की चौथी फिल्म ने इंडी के किरदार को एक मज़ाक़ में बदल दिया। इस फिल्म में वो एक ऐसा किरदार है, जिसका दिमाग़ हर समय खिसका हुआ रहता है। इस फिल्म के किरदार बूढ़े आदमी के जोक्स बहुत ऊबाऊ थे।
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'सुपरमैन IV: द क्वेस्ट फॉर पीस' (1987)
- 'सुपरमैन IV: द क्वेस्ट फॉर पीस' थीम बेस्ड फिल्म थी। यह फिल्म शीत युद्ध समाप्त होने के बाद के समय पर आधारित थी। इस फिल्म में सुपरमैन दुनिया भर के सभी न्यूक्लियर वेपंस को इकट्ठा कर बर्बाद करने के मिशन पर है। यह फिल्म बोरिंग थी और इसके स्पेशल इफेक्ट भी घटिया थे। यह फिल्म एक ऐसी फिल्म सीरीज़ को और ख़राब करने की कोशिश भर थी, जो पहले से ही ख़राब हालत में थी।
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'टर्मिनेटर जेनेसिस' (2015)
- टर्मिनेटर सीरीज़ की पाँचवी फिल्म में ऑर्नोल्ड श्वार्जनेगर को एमिलिया क्लार्क के साथ एक ख़तरनाक मिशन पूरा करते हुए दिखाया गया था। लेकिन यह फिल्म किसी भी पैमाने पर खरी नहीं उतरती। पहली फिल्म में मौजूद धुआँधाड़ एक्शन इस फिल्म से गायब था।
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'स्पाइडर मैन 3' (2007)
- 'स्पाइडर मैन 3' को सैम रैमी ने डायरेक्ट किया था। टॉबी मैग्वायर की एक्टिंग से सजी यह फिल्म स्पाइडर मैन सीरीज़ की आख़िरी फिल्म थी। लेकिन यह फिल्म दर्शकों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं थी।
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'इंडिपेडेंस डे: रिसर्जेंस' (2018)
- विल स्मिथ इस फिल्म में एक्टर के तौर पर शामिल नहीं हुए थे। उन्होंने यह ज़िम्मेदारी जेफ गोल्डब्लम और लियाम हैम्सवर्थ पर छोड़ दी थी। ऐसा लगता है कि उनका फैसला सही था। 2018 में आई इस फिल्म की फिल्म-क्रिटिक्स ने धज्जियाँ उड़ा दीं।
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'द लॉस्ट वर्ल्ड: जुरासिक पार्क' (1997)
- 'द लॉस्ट वर्ल्ड: जुरासिक पार्क' स्टीवन स्पीलबर्ग ने डायरेक्ट की थी। यह जुरासिक पार्क सीरीज़ की आख़िरी फिल्म थी। लेकिन उनके जैसा बेहतरीन डायरेक्टर भी इस सीरीज़ को लंबा नहीं खींच सका।
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'ब्ल्यूज़ ब्रॉदर्स 2000' (1998)
- निश्चित रूप से 'द ब्ल्यूज़ ब्रॉदर्स' अब तक की सबसे शानदार म्यूज़िकल कॉमेडी फिल्म है। बदक़िस्मती से, इस शानदार फिल्म को इसके घटिया लिखे हुए सीक्वल ने बर्बाद कर दिया।
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'ग्रीस 2' (1982)
- ग्रीस को बेहतरीन स्क्रिप्ट, आसान और म्यूज़िकल नंबर्स के लिए जाना जाता है। लेकिन ग्रीस-2 ने इस फिल्म की तस्वीर बिगाड़ दी और दर्शकों को यह मानने पर मजबूर कर दिया कि यह एक घटिया फिल्म है।
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'डैडी डे कैंप' (2007)
- 2003 की फिल्म 'डैडी डे केयर' का यह सीक्वल देखने में साफ पता चलता था कि इसे पिछली फिल्म की सक्सेस को भुनाकर पैसे कमाने के लिए बनाया गया है। इस फिल्म का ह्यूमर पूरी तरह किरदारों के हाव-भाव पर आधारित है और उससे हँसी भी नहीं आती।
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'पुलिस अकेडमी 4: सिटीज़ंस ऑन पेट्रोल' (1987)
- 'पुलिस अकेडमी 4: सिटीज़ंस ऑन पेट्रोल' मशहूर पुलिस अकेडमी सीरीज़ की चौथी फिल्म है। यह फिल्म देखते हुए हर जगह आने वाली ऊल-जलूल घटनाओं का अंदाज़ा पहले से ही हो जाता है।
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'सन ऑफ द मास्क' (2005)
- इस फिल्म में जेमी कैनेडी, जिम कैरे की तरह एक्टिंग नहीं कर पाए। इसी एक्टिंग के चलते उन्हें रैज़ी अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया। यह अवॉर्ड सबसे ख़राब फिल्मों और ख़राब एक्टिंग के लिए दिया जाता है।
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'डंब एंड डंबर: व्हेन हैरी मेट लॉयड' (2003)
- शायद 'डंब एंड डंबर' के राइटर नहीं चाहते थे कि उनकी फिल्म के एक्टर आगे बढ़ें। इसलिए उन्होंने इस फिल्म के राइट्स प्रीक्वल के लिए स्टूडियो को सौंप दिए, जिससे स्टूडियो किसी को भी इसे बनाने का प्रोजेक्ट दे सकता था। इसका अंजाम भी बिल्कुल वही हुआ, जो आप सोच रहे हैं।
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'बैटमेन एंड रॉबिन' (1997)
- 1990 के दशक की बैटमैन फिल्में वाकई बहुत अजीब थीं, लेकिन इस फिल्म ने हद कर दी। इस फिल्म में ऑर्नोल्ड श्वार्जनेगर को चांदी की जीवित मूर्ति 'मिस्टर फ्रीज' की भूमिका निभाने के लिए 25 मिलियन यूएस डॉलर दिए गए थे। लेकिन ऑर्नोल्ड भी इसे फ्लॉप होने से नहीं बचा सके।
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'चीपर बाइ द डज़न 2' (2005)
- 'चीपर बाइ द डज़न 2' ऑरिजिनल फिल्म के रीमेक का सीक्वल था। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि फिल्म देखने वालों के पहले से ही पता था कि कहाँ पर क्या होने वाला है। स्टीव मार्टिन और यूजीन लेवी जैसी एक्टर का टैलेंट भी इस फिल्म में बर्बाद हो गया।
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'बेसिक इंस्टिक्ट 2' (2006)
- 'बेसिक इंस्टिक्ट' ऐसी फिल्म है, जिसे कल्चरल रेफरेंस के तौर पर याद किया जाता है। लेकिन, 'बेसिक इंस्टिक्ट 2' ऐसी फिल्म साबित नहीं हुई। 14 सालों बाद डायरेक्टर्स ने फिर से कोशिश की और इसका सीक्वल बनाया, लेकिन वो कामयाब नहीं हो सके।
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'बुक ऑफ शैडोज़: ब्लेयर विच' (2000)
- 'द ब्लेयर विच प्रॉजेक्ट' हॉरर फिल्मों की कैटेगेरी में बेहतरीन फिल्म है। इसका सीक्वेल महज पैसे की बर्बादी थी। पहली फिल्म की तरह इस फिल्म में कुछ भी नया नहीं था। इसमें जो भी हॉरर सीन थे, वो पुरानी हॉरर फिल्मों की नकल थे।
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आज तक के सबसे ख़राब फिल्म सीक्वल
हे भगवान! अब और नहीं
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ख़राब सीक्वल बनाना दशकों से हॉलीवुड में एक ट्रेंड रहा है। उस डायरेक्टर की तारीफ़ की जानी चाहिए, जो अपनी आर्ट की इज़्ज़त करते हुए सही समय पर फिल्में बनाना छोड़ देता है। मानते हैं कि फिल्म का सीक्वेल बनाए जाने से पैसा कमाया जा सकता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सीक्वल फिल्म की स्टोरी भी उतनी ही बेहतर होगी। ख़राब सीक्वल फिल्म के नमूने जब-तब बड़े पर्दे पर देखने को मिल जाते हैं।
कहावत है ना, सोया हुआ हुआ शेर सुंदर दिखाई देता है। लेकिन हॉलीवुड के कुछ डायरेक्टर्स ने इस कहावत के बिल्कुल उलट काम किया। इस गैलरी पर क्लिक करें और जानें कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में, जिनके सीक्वल सबसे घटिया और बेकार साबित हुए।
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