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वो किताबें जिन्हें पढ़ने का लोग झूठा दिखावा करते हैं
- जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है, वैसे वैसे आप लोगों की नज़र में बुद्धिमान होते जाते हैं। लेकिन अगर वे कुछ बेहतरीन और शानदार किताबों पे आपकी राय पूछ लें, तो आपकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। आपको समझ आ ही गया होगा कि हम किन किताबों कि तरफ इशारा कर रहे हैं। सालों पहले लिखी गई वो किताबें, जो हमारे कल्चर के कैनन बन चुके हैं। जो स्टूडेंट्स की रीडिंग लिस्ट में हमेशा रहती हैं। लेकिन अगर आप किताबों पर बातचीत से घबरा जाते हैं और लोगों के बीच उन तमाम किताबों को पढ़ने का झूठा दावा कर देते हैं, जिनसे आपका हाई-स्कूल के बाद जैसे-तैसे पीछा छूटा है, तो खुद को इतना जज करने कि ज़रूरत नहीं हैं। आपको बता दें, ऐसा करने वाले आप अकेले नहीं हैं, बहुत से लोग उन किताबों को पढ़ने के बारे में झूठ बोलते हैं। जिन किताबों को पढ़ने के बारे में लोग आमतौर पर झूठ बोलते हैं, वे साहित्य कि दुनिया की क्लासिक्स मानी जाती हैं, लिट्रेचर की बुनियाद मानी जाती है। दुनिया को बदल कर रख देने वाली ये किताबें किसी भी सामाजिक विचारधारा के पिलर होते हैं। लेकिन इन क्लासिक्स को पढ़ने का या इसी दशक में लिखी गईं महत्त्वपूर्ण चीज़ों को पढ़ने का वक़्त किसके पास है? इन किताबों को पढ़ने के बारे में आप झूठ बोल जाते हैं क्योंकि आपने इन पर बनी फिल्में देख रखी होती हैं, लेकिन आप भी जानते हैं ये दोनों एक चीज़ नहीं हैं। हालाँकि, कई मामलों में फिल्म वास्तव में किताब से बेहतर साबित हुई है। ये भी एक सच है कि कभी-कभी आप आसान भाषा में लिखी हुई आसान कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं। आप ख़ासकर उन लेखकों की रचनाएँ पढ़ना चाहते हैं, जिनके अनुभव आप से मिलते-जुलते हों। जिनकी लिखी हुई चीज़ें रिलेटेबल हों, या फिर ऐसा भी हो सकता है कि ये किताबें पढ़नी आपके बस की ही न हों। ये मानना मुश्किल है, ख़ास कर तब जब आप ने किसी किताब को पढ़ना शुरू कर दिया हो और काफ़ी पन्ने पढ़ डालने के बाद ये एहसास हो कि ये किताब आपके बस की बात नहीं है। ऐसे बहुत कम लोग हैं, जिन्होंने सचमुच सभी क्लासिक्स पढ़े हैं, और इतने कैरेक्टर्स और प्लॉट लाइंस के बीच उन्हें आपके झूठ पकड़ने में मुश्किल भी होती होगी, क्योंकि बहुत सारे लोग झूठे हैं। ‘रैंकर’ द्वारा 83,000 से अधिक पार्टिसिपेंट्स के साथ किए गए एक पोल में लोगों ने खुल कर (ज़ाहिर है, बिना अपनी पहचान बताए) उन किताबों के बारे में बताया, जिनको पढ़ने के बारे में उन्होंने झूठ बोला है। यह जानने के लिए कि आपने इनमें से कितनी किताबें पढ़ रखी हैं, गैलरी पर क्लिक करें।
© Public Domain
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आर. एल. स्टाइन की 'गूज़बम्प्स'
- किसी ने कहा होगा, "यह मेरे एक दोस्त के दोस्त के साथ हुआ..."। उसके बाद उसने आपके रिएक्शन का इंतेज़ार किया होगा। आपको हँसी आ गयी होगी क्योंकि आपको समझ ही नहीं आया होगा कि वो किस बारे में बात कर रहे हैं।
© Shutterstock
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विलियम शेक्स्पीयर की रचनाएँ
- शेक्स्पीयर ने बहुत कुछ लिखा है, 'हैमलेट', 'मैकबेथ', 'द टेम्पेस्ट', 'ट्वेल्थ नाइट', 'ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम' वगैरा। इतनी मशहूर और अच्छी किताबें होने के बावजूद इन्हें बहुत कम लोगों ने पढ़ा है।
© Shutterstock
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एमेली ब्रोंटे की वुथेरिंग हाइट्स
- इस किताब को पढ़ने का दावा करने वाले लोग वही हैं, जो कहते हैं कि उन्हें ब्लैक कॉफ़ी पसंद है।
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रॉबर्ट लुई स्टीवेन्सन की ‘ट्रेज़र आइलैंड’
- डिज़्नी ने इस कहानी को काफ़ी मशहूर बना दिया है। हो सकता है कि आपने इसकी फ़िल्म देखी हो, लेकिन आपने यह किताब नहीं पढ़ी होगी।
© Getty Images
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चार्ल्स डिकेन्स की ‘अ टेल ऑफ टू सिटीज़’
- तो आप उन लोगों में हैं जो फ्रेंच रेवोल्यूशन के वक़्त के लंदन और पेरिस के बारे में जानने के लिए नॉवेल पढ़ने के बजाय नेटफ्लिक्स देखना पसंद करते हैं?
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चार्ल्स डिकेन्स की ‘ग्रेट एक्सपेक्टेशन’
- ये भी नहीं पढ़ी, डिकेन्स कितने निराश होंगे।
© Shutterstock
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ऐनी राइस की ‘इंटरव्यू विद द वैम्पायर’
- हाँ वही, टॉम क्रूज़ और ब्रैड पिट वाली...
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चार्लोट ब्रोंटे की ‘जेन आयर’ - ब्रोंटे सिस्टर्स की किस्मत ही ठीक नहीं। हालांकि, इस नॉवेल के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया था, ख़ैर..
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डगलस एडम्स की ‘द हिचहाइकर गाइड टू द गैलेक्सी’
- ऐसे हज़ारों लोग हैं जिन्होंने सिर्फ़ फिल्म देखी है, लेकिन वो ऐसे बात करते हैं जैसे उन्होंने पूरी किताब पढ़ रखी है।
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वीसी एंड्रयूज की ‘फ्लावर्स इन द एटिक’ - इस नॉवेल पर एक नहीं, दो बार फिल्में बनी हैं, 1987 और 2014 में! अगर आपने दोनों देख रखी हैं, तो इसे पढ़ने के रूप में गिना जाना चाहिए, है की नहीं?
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होमर की ‘द इलियड’
- यह पुराना ग्रीक क्लासिक महाकाव्य इसकी लिखावट की डैक्टाइल हेक्सामीटर (मीटर) शैली की वजह से पेज टर्नर है।
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स्टेफ़नी मेयर की ‘ट्वाइलाइट’
- कोई सोच ही सकता है कि इस यंग अडल्ट वैम्पायर सागा को कोई क्यूँ नहीं पढ़ना चाहेगा, लेकिन सच ये है कि इसे भी कई लोगों ने नहीं पढ़ा है, शायद वे प्रीमियर नाइट पर बिना किसी स्पॉइलर्स के फिल्म को देखना चाहते होंगे, क्योंकि किताब नहीं पढ़े जाने की और कोई और वजह तो दिखती नहीं।
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रे ब्रैडबरी की ‘फॉरेन्हाइट 451’
- इस फ़ेमस डिस्टोपियन नॉवेल में उस फ्यूचर सोसाइटी की कहानी दी गई है, जो अनसुनी या अनजानी चीज़ों से डरता है और इसी डर में नई चीज़ें सीखाने वाली सारी किताबें जला दी जाती हैं। ह्यूमनकाइंड की साइकोलॉजी को समझने के लिए ग़ज़ब की किताब है ये! ऐसा हमने सुना है... आपकी तरह हमारी भी पढ़ने की आदत कहाँ है।
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जेन ऑस्टिन की ‘प्राइड एंड प्रेजुडिस’
- एलिज़ाबेथ बेनेट और मिस्टर डार्सी के ज़िक्र पर आप किएरा नाइटली और मैथ्यू मैकफैडेन के बारे में सोचते हैं,
© Shutterstock
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होमर की ‘द ओडिसी’
- फिर से होमर? होमर की इस किताब को मॉडर्न वेस्टर्न लिट्रेचर का कैनन माना जाता है। पर हमें क्या? हमारे लिए तो यह वजह भी नाकाफ़ी है।
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लुईस कैरोल की ‘एलिस इन वंडरलैंड’
- कई फिल्म्स इस नॉवेल से इन्सपायर्ड हैं, जिन्हें देख कर हमें यह बात समझ में आई कि एक लड़की एक गड्ढे में गिर जाती है और एक अजीब और मैन सायकेडेलिक जीवों की आबादी वाले एक कल्पना लोक में पहुँच जाती है।
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लुईसा मे अलकॉट की ‘लिटिल वुमेन’
- नॉवेल पढ़ने में शायद ही किसी कि दिलचस्पी हो, लेकिन जब डायरेक्टर ग्रेट गेरविग एम्मा वॉटसन, साओर्से रोनन और टिमोथी चालमेट स्टारर इस नॉवेल पर फिल्म बनाएँगी तब थिएटर में लोगों की भीड़ देखने लायक होती है।
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17 / 31 Fotos
‘द बाइबल’
- यह एक मोटी किताब है, पर अच्छी बात यह है कि हर संडे चर्च में मिलने वाले क्लिफ्स नोट्स इसे पढ़ना आसान बना देते हैं...
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जे. डी. सालिंगर की ‘द कैचर इन द राई’ - क्या आपको लगता है कि फेमस एक्ट्रेस जीन सेबर्ग भी इसे सिर्फ़ दिखावे के लिए लेकर घूमती थीं?
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जॉन रोनल्ड राउल टोल्किन की ‘द लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स’
- किताब कोई क्यूँ ही पढ़े, फिल्में ही काफ़ी हैं, क्या ही कहा जाए।
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जॉर्ज ऑरवेल की '1984'
- जब भी सोसाइटी भयावह रूप से जंग, सर्विलांस, या पब्लिक मैनीपुलेशन से भरी ‘1984’ की इस डिस्टोपियन कहानी जैसी दिखने लगती है, आप इस नॉवेल का रेफ्रेन्स देने लग जाते हैं। लेकिन इससे पहले कि कोई गंभीर बातचीत हो आप टॉपिक बदल देते हैं, क्योंकि नॉवेल तो पढ़ी नहीं है।
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जॉन स्टीनबेक की ‘ऑफ़ माइस एंड मेन’
- ऐसे कई लोग हैं, जो इस किताब के टाइटल को इसलिए याद रखते हैं, क्योंकि इस नाम का एक अमेरिकी मेटलकोर बैंड है
© Shutterstock
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नाथनियल हॉथोर्न की ‘द स्कार्लेट लेटर’ - अगर आप डेमी मूर की फिल्म देखकर इस किताब की कहानी जानते हैं, तो अपना हाथ उठाएँ...
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स्कॉट फिजराल्ड की ‘द ग्रेट गैट्सबी’ - गैट्सबी-थीम वाली पार्टी में जाना मज़ेदार लगता है, जब आपने लियोनार्डो डिकैप्रियो और टोबी मगुआएर वाली नॉवेल पर बेस्ड फिल्म देखी रखी हो।
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विलियम गोल्डिंग की ‘लार्ड ऑफ़ द फ्लाइज’
- अगर आप लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाना चाहते हैं कि आपने यह किताब पढ़ रखी है, तो जब भी कोई किताब का ज़िक्र करे, बस अपनी भौहें ऊपर उठाएं जैसे कि इसकी खूंखार कहानी याद कर रहे हों।
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मार्क ट्वेन की ‘द ऐडवेंचर्स ऑफ़ टॉम सॉयर’
- 'हकलबेरी फिन' अधिक लोकप्रिय हुई थी।
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जे. के. राउलिंग की ‘हैरी पॉटर एंड द फिलॉसफर्स स्टोन’ - अगर आपने आज के समय में 'हैरी पॉटर' सीरीज की किताबें नहीं पढ़ी हैं, तो कई लोग आपसे दोस्ती तोड़ सकते हैं। दोस्तों को खोने से बेहतर है किताब पढ़ लेने का झूठा दावा करें और जीवन में आगे बढें।
© Shutterstock
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एन फ्रैंक की ‘द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल’
- आप जानते हैं कि यह कितनी ज़रूरी है, लेकि आपके पास टाइम कहाँ है जनाब।
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विलियम शेक्सपियर की ‘रोमियो एंड जूलियट’
- आपने अब तक की सबसे शानदार रोमैंटिक ट्रेजेडी नहीं पढ़ी है?! ख़ैर, न पढ़ने वालों के विशाल क्लब में आपका स्वागत है...
© Getty Images
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हार्पर ली की 'टु किल अ मॉकिंगबर्ड’
- इसने पुलित्जर पुरस्कार जीता और यह आधुनिक अमेरिकी साहित्य की एक क्लासिक बन गयी है, इसलिए इसको पढ़ने का झूठा दावा बतौर इन्टलेक्चूअल आपकी इमेज को बचाए रख सकता है!
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वो किताबें जिन्हें पढ़ने का लोग झूठा दिखावा करते हैं
- जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है, वैसे वैसे आप लोगों की नज़र में बुद्धिमान होते जाते हैं। लेकिन अगर वे कुछ बेहतरीन और शानदार किताबों पे आपकी राय पूछ लें, तो आपकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। आपको समझ आ ही गया होगा कि हम किन किताबों कि तरफ इशारा कर रहे हैं। सालों पहले लिखी गई वो किताबें, जो हमारे कल्चर के कैनन बन चुके हैं। जो स्टूडेंट्स की रीडिंग लिस्ट में हमेशा रहती हैं। लेकिन अगर आप किताबों पर बातचीत से घबरा जाते हैं और लोगों के बीच उन तमाम किताबों को पढ़ने का झूठा दावा कर देते हैं, जिनसे आपका हाई-स्कूल के बाद जैसे-तैसे पीछा छूटा है, तो खुद को इतना जज करने कि ज़रूरत नहीं हैं। आपको बता दें, ऐसा करने वाले आप अकेले नहीं हैं, बहुत से लोग उन किताबों को पढ़ने के बारे में झूठ बोलते हैं। जिन किताबों को पढ़ने के बारे में लोग आमतौर पर झूठ बोलते हैं, वे साहित्य कि दुनिया की क्लासिक्स मानी जाती हैं, लिट्रेचर की बुनियाद मानी जाती है। दुनिया को बदल कर रख देने वाली ये किताबें किसी भी सामाजिक विचारधारा के पिलर होते हैं। लेकिन इन क्लासिक्स को पढ़ने का या इसी दशक में लिखी गईं महत्त्वपूर्ण चीज़ों को पढ़ने का वक़्त किसके पास है? इन किताबों को पढ़ने के बारे में आप झूठ बोल जाते हैं क्योंकि आपने इन पर बनी फिल्में देख रखी होती हैं, लेकिन आप भी जानते हैं ये दोनों एक चीज़ नहीं हैं। हालाँकि, कई मामलों में फिल्म वास्तव में किताब से बेहतर साबित हुई है। ये भी एक सच है कि कभी-कभी आप आसान भाषा में लिखी हुई आसान कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं। आप ख़ासकर उन लेखकों की रचनाएँ पढ़ना चाहते हैं, जिनके अनुभव आप से मिलते-जुलते हों। जिनकी लिखी हुई चीज़ें रिलेटेबल हों, या फिर ऐसा भी हो सकता है कि ये किताबें पढ़नी आपके बस की ही न हों। ये मानना मुश्किल है, ख़ास कर तब जब आप ने किसी किताब को पढ़ना शुरू कर दिया हो और काफ़ी पन्ने पढ़ डालने के बाद ये एहसास हो कि ये किताब आपके बस की बात नहीं है। ऐसे बहुत कम लोग हैं, जिन्होंने सचमुच सभी क्लासिक्स पढ़े हैं, और इतने कैरेक्टर्स और प्लॉट लाइंस के बीच उन्हें आपके झूठ पकड़ने में मुश्किल भी होती होगी, क्योंकि बहुत सारे लोग झूठे हैं। ‘रैंकर’ द्वारा 83,000 से अधिक पार्टिसिपेंट्स के साथ किए गए एक पोल में लोगों ने खुल कर (ज़ाहिर है, बिना अपनी पहचान बताए) उन किताबों के बारे में बताया, जिनको पढ़ने के बारे में उन्होंने झूठ बोला है। यह जानने के लिए कि आपने इनमें से कितनी किताबें पढ़ रखी हैं, गैलरी पर क्लिक करें।
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आर. एल. स्टाइन की 'गूज़बम्प्स'
- किसी ने कहा होगा, "यह मेरे एक दोस्त के दोस्त के साथ हुआ..."। उसके बाद उसने आपके रिएक्शन का इंतेज़ार किया होगा। आपको हँसी आ गयी होगी क्योंकि आपको समझ ही नहीं आया होगा कि वो किस बारे में बात कर रहे हैं।
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विलियम शेक्स्पीयर की रचनाएँ
- शेक्स्पीयर ने बहुत कुछ लिखा है, 'हैमलेट', 'मैकबेथ', 'द टेम्पेस्ट', 'ट्वेल्थ नाइट', 'ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम' वगैरा। इतनी मशहूर और अच्छी किताबें होने के बावजूद इन्हें बहुत कम लोगों ने पढ़ा है।
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एमेली ब्रोंटे की वुथेरिंग हाइट्स
- इस किताब को पढ़ने का दावा करने वाले लोग वही हैं, जो कहते हैं कि उन्हें ब्लैक कॉफ़ी पसंद है।
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रॉबर्ट लुई स्टीवेन्सन की ‘ट्रेज़र आइलैंड’
- डिज़्नी ने इस कहानी को काफ़ी मशहूर बना दिया है। हो सकता है कि आपने इसकी फ़िल्म देखी हो, लेकिन आपने यह किताब नहीं पढ़ी होगी।
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चार्ल्स डिकेन्स की ‘अ टेल ऑफ टू सिटीज़’
- तो आप उन लोगों में हैं जो फ्रेंच रेवोल्यूशन के वक़्त के लंदन और पेरिस के बारे में जानने के लिए नॉवेल पढ़ने के बजाय नेटफ्लिक्स देखना पसंद करते हैं?
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चार्ल्स डिकेन्स की ‘ग्रेट एक्सपेक्टेशन’
- ये भी नहीं पढ़ी, डिकेन्स कितने निराश होंगे।
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ऐनी राइस की ‘इंटरव्यू विद द वैम्पायर’
- हाँ वही, टॉम क्रूज़ और ब्रैड पिट वाली...
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चार्लोट ब्रोंटे की ‘जेन आयर’ - ब्रोंटे सिस्टर्स की किस्मत ही ठीक नहीं। हालांकि, इस नॉवेल के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया था, ख़ैर..
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डगलस एडम्स की ‘द हिचहाइकर गाइड टू द गैलेक्सी’
- ऐसे हज़ारों लोग हैं जिन्होंने सिर्फ़ फिल्म देखी है, लेकिन वो ऐसे बात करते हैं जैसे उन्होंने पूरी किताब पढ़ रखी है।
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वीसी एंड्रयूज की ‘फ्लावर्स इन द एटिक’ - इस नॉवेल पर एक नहीं, दो बार फिल्में बनी हैं, 1987 और 2014 में! अगर आपने दोनों देख रखी हैं, तो इसे पढ़ने के रूप में गिना जाना चाहिए, है की नहीं?
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होमर की ‘द इलियड’
- यह पुराना ग्रीक क्लासिक महाकाव्य इसकी लिखावट की डैक्टाइल हेक्सामीटर (मीटर) शैली की वजह से पेज टर्नर है।
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स्टेफ़नी मेयर की ‘ट्वाइलाइट’
- कोई सोच ही सकता है कि इस यंग अडल्ट वैम्पायर सागा को कोई क्यूँ नहीं पढ़ना चाहेगा, लेकिन सच ये है कि इसे भी कई लोगों ने नहीं पढ़ा है, शायद वे प्रीमियर नाइट पर बिना किसी स्पॉइलर्स के फिल्म को देखना चाहते होंगे, क्योंकि किताब नहीं पढ़े जाने की और कोई और वजह तो दिखती नहीं।
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रे ब्रैडबरी की ‘फॉरेन्हाइट 451’
- इस फ़ेमस डिस्टोपियन नॉवेल में उस फ्यूचर सोसाइटी की कहानी दी गई है, जो अनसुनी या अनजानी चीज़ों से डरता है और इसी डर में नई चीज़ें सीखाने वाली सारी किताबें जला दी जाती हैं। ह्यूमनकाइंड की साइकोलॉजी को समझने के लिए ग़ज़ब की किताब है ये! ऐसा हमने सुना है... आपकी तरह हमारी भी पढ़ने की आदत कहाँ है।
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जेन ऑस्टिन की ‘प्राइड एंड प्रेजुडिस’
- एलिज़ाबेथ बेनेट और मिस्टर डार्सी के ज़िक्र पर आप किएरा नाइटली और मैथ्यू मैकफैडेन के बारे में सोचते हैं,
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होमर की ‘द ओडिसी’
- फिर से होमर? होमर की इस किताब को मॉडर्न वेस्टर्न लिट्रेचर का कैनन माना जाता है। पर हमें क्या? हमारे लिए तो यह वजह भी नाकाफ़ी है।
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लुईस कैरोल की ‘एलिस इन वंडरलैंड’
- कई फिल्म्स इस नॉवेल से इन्सपायर्ड हैं, जिन्हें देख कर हमें यह बात समझ में आई कि एक लड़की एक गड्ढे में गिर जाती है और एक अजीब और मैन सायकेडेलिक जीवों की आबादी वाले एक कल्पना लोक में पहुँच जाती है।
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लुईसा मे अलकॉट की ‘लिटिल वुमेन’
- नॉवेल पढ़ने में शायद ही किसी कि दिलचस्पी हो, लेकिन जब डायरेक्टर ग्रेट गेरविग एम्मा वॉटसन, साओर्से रोनन और टिमोथी चालमेट स्टारर इस नॉवेल पर फिल्म बनाएँगी तब थिएटर में लोगों की भीड़ देखने लायक होती है।
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‘द बाइबल’
- यह एक मोटी किताब है, पर अच्छी बात यह है कि हर संडे चर्च में मिलने वाले क्लिफ्स नोट्स इसे पढ़ना आसान बना देते हैं...
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जे. डी. सालिंगर की ‘द कैचर इन द राई’ - क्या आपको लगता है कि फेमस एक्ट्रेस जीन सेबर्ग भी इसे सिर्फ़ दिखावे के लिए लेकर घूमती थीं?
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जॉन रोनल्ड राउल टोल्किन की ‘द लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स’
- किताब कोई क्यूँ ही पढ़े, फिल्में ही काफ़ी हैं, क्या ही कहा जाए।
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जॉर्ज ऑरवेल की '1984'
- जब भी सोसाइटी भयावह रूप से जंग, सर्विलांस, या पब्लिक मैनीपुलेशन से भरी ‘1984’ की इस डिस्टोपियन कहानी जैसी दिखने लगती है, आप इस नॉवेल का रेफ्रेन्स देने लग जाते हैं। लेकिन इससे पहले कि कोई गंभीर बातचीत हो आप टॉपिक बदल देते हैं, क्योंकि नॉवेल तो पढ़ी नहीं है।
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जॉन स्टीनबेक की ‘ऑफ़ माइस एंड मेन’
- ऐसे कई लोग हैं, जो इस किताब के टाइटल को इसलिए याद रखते हैं, क्योंकि इस नाम का एक अमेरिकी मेटलकोर बैंड है
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नाथनियल हॉथोर्न की ‘द स्कार्लेट लेटर’ - अगर आप डेमी मूर की फिल्म देखकर इस किताब की कहानी जानते हैं, तो अपना हाथ उठाएँ...
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स्कॉट फिजराल्ड की ‘द ग्रेट गैट्सबी’ - गैट्सबी-थीम वाली पार्टी में जाना मज़ेदार लगता है, जब आपने लियोनार्डो डिकैप्रियो और टोबी मगुआएर वाली नॉवेल पर बेस्ड फिल्म देखी रखी हो।
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विलियम गोल्डिंग की ‘लार्ड ऑफ़ द फ्लाइज’
- अगर आप लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाना चाहते हैं कि आपने यह किताब पढ़ रखी है, तो जब भी कोई किताब का ज़िक्र करे, बस अपनी भौहें ऊपर उठाएं जैसे कि इसकी खूंखार कहानी याद कर रहे हों।
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मार्क ट्वेन की ‘द ऐडवेंचर्स ऑफ़ टॉम सॉयर’
- 'हकलबेरी फिन' अधिक लोकप्रिय हुई थी।
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जे. के. राउलिंग की ‘हैरी पॉटर एंड द फिलॉसफर्स स्टोन’ - अगर आपने आज के समय में 'हैरी पॉटर' सीरीज की किताबें नहीं पढ़ी हैं, तो कई लोग आपसे दोस्ती तोड़ सकते हैं। दोस्तों को खोने से बेहतर है किताब पढ़ लेने का झूठा दावा करें और जीवन में आगे बढें।
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एन फ्रैंक की ‘द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल’
- आप जानते हैं कि यह कितनी ज़रूरी है, लेकि आपके पास टाइम कहाँ है जनाब।
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विलियम शेक्सपियर की ‘रोमियो एंड जूलियट’
- आपने अब तक की सबसे शानदार रोमैंटिक ट्रेजेडी नहीं पढ़ी है?! ख़ैर, न पढ़ने वालों के विशाल क्लब में आपका स्वागत है...
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हार्पर ली की 'टु किल अ मॉकिंगबर्ड’
- इसने पुलित्जर पुरस्कार जीता और यह आधुनिक अमेरिकी साहित्य की एक क्लासिक बन गयी है, इसलिए इसको पढ़ने का झूठा दावा बतौर इन्टलेक्चूअल आपकी इमेज को बचाए रख सकता है!
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वो किताबें जिन्हें पढ़ने का लोग झूठा दिखावा करते हैं
इस तरह का झूठ बोलने वाले आप अकेले नहीं हैं
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जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है, वैसे वैसे आप लोगों की नज़र में बुद्धिमान होते जाते हैं। लेकिन अगर वे कुछ बेहतरीन और शानदार किताबों पे आपकी राय पूछ लें, तो आपकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। आपको समझ आ ही गया होगा कि हम किन किताबों कि तरफ इशारा कर रहे हैं। सालों पहले लिखी गई वो किताबें, जो हमारे कल्चर के कैनन बन चुके हैं। जो स्टूडेंट्स की रीडिंग लिस्ट में हमेशा रहती हैं।
लेकिन अगर आप किताबों पर बातचीत से घबरा जाते हैं और लोगों के बीच उन तमाम किताबों को पढ़ने का झूठा दावा कर देते हैं, जिनसे आपका हाई-स्कूल के बाद जैसे-तैसे पीछा छूटा है, तो खुद को इतना जज करने कि ज़रूरत नहीं हैं। आपको बता दें, ऐसा करने वाले आप अकेले नहीं हैं, बहुत से लोग उन किताबों को पढ़ने के बारे में झूठ बोलते हैं।
जिन किताबों को पढ़ने के बारे में लोग आमतौर पर झूठ बोलते हैं, वे साहित्य कि दुनिया की क्लासिक्स मानी जाती हैं, लिट्रेचर की बुनियाद मानी जाती है। दुनिया को बदल कर रख देने वाली ये किताबें किसी भी सामाजिक विचारधारा के पिलर होते हैं। लेकिन इन क्लासिक्स को पढ़ने का या इसी दशक में लिखी गईं महत्त्वपूर्ण चीज़ों को पढ़ने का वक़्त किसके पास है?
इन किताबों को पढ़ने के बारे में आप झूठ बोल जाते हैं क्योंकि आपने इन पर बनी फिल्में देख रखी होती हैं, लेकिन आप भी जानते हैं ये दोनों एक चीज़ नहीं हैं। हालाँकि, कई मामलों में फिल्म वास्तव में किताब से बेहतर साबित हुई है।
ये भी एक सच है कि कभी-कभी आप आसान भाषा में लिखी हुई आसान कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं। आप ख़ासकर उन लेखकों की रचनाएँ पढ़ना चाहते हैं, जिनके अनुभव आप से मिलते-जुलते हों। जिनकी लिखी हुई चीज़ें रिलेटेबल हों, या फिर ऐसा भी हो सकता है कि ये किताबें पढ़नी आपके बस की ही न हों। ये मानना मुश्किल है, ख़ास कर तब जब आप ने किसी किताब को पढ़ना शुरू कर दिया हो और काफ़ी पन्ने पढ़ डालने के बाद ये एहसास हो कि ये किताब आपके बस की बात नहीं है।
ऐसे बहुत कम लोग हैं, जिन्होंने सचमुच सभी क्लासिक्स पढ़े हैं, और इतने कैरेक्टर्स और प्लॉट लाइंस के बीच उन्हें आपके झूठ पकड़ने में मुश्किल भी होती होगी, क्योंकि बहुत सारे लोग झूठे हैं।
‘रैंकर’ द्वारा 83,000 से अधिक पार्टिसिपेंट्स के साथ किए गए एक पोल में लोगों ने खुल कर (ज़ाहिर है, बिना अपनी पहचान बताए) उन किताबों के बारे में बताया, जिनको पढ़ने के बारे में उन्होंने झूठ बोला है।
यह जानने के लिए कि आपने इनमें से कितनी किताबें पढ़ रखी हैं, गैलरी पर क्लिक करें।
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