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इन मशहूर हस्तियों को किया गया था निर्वासित
- आमतौर पर, निर्वासन का मतलब किसी को राजनैतिक कारणों से या सज़ा के तौर पर, उसके ख़ुद के देश से बाहर निकालना होता है। इतिहास के सबसे प्रसिद्ध निर्वासनों की सूची बहुत लंबी और हैरान करने वाली है। इस लिस्ट में राजा, वैज्ञानिक, राजनेता, तानाशाह, कवि, जासूस और क्रांतिकारी भी शामिल हैं। इनमें से कुछ लोग जान बचाने के लिए ख़ुद देश से बाहर भाग गए और कुछ ने अपने देश में रहना चुना। इनमें से कुछ लोग ऐसे भी थे, जो देश वापस लौटने का इंतज़ार करते-करते मर गए। इस गैलरी पर क्लिक करें और जानें वे कौन सी महिलाएँ या पुरूष थे, जिन्हें उनकी मर्ज़ी से या ज़बरदस्ती विदेशी ज़मीन पर निर्वासित कर दिया गया।
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नेपोलियन बोर्नापोर्ट (1769–1821)
- यह इतिहास का सबसे मशहूर निर्वासन है। नेपोलियन बोर्नापोर्ट को फ्राँस से दो बार निर्वासित किया गया था। 1813 में, लगातार कई अपमानजनक हारों के बाद उन्हें एल्बा के मेडिटेरेनियन आइलैंड पर वक़्त बिताना पड़ा। इसके बाद नेपोलियन कुछ समय के लिए सत्ता पर क़ाबिज हुए, लेकिन फिर से उन्हें युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। इस बार उन्हें 1815 में सेंट हेलेना आइलैंड पर निर्वासित कर दिया गया। 1821 में दक्षिण अटलांटिक के इसी आइलैंड पर उनकी मौत हो गई।
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एडवर्ड स्नोडेन
- कुख्यात अमेरिकी व्हिसलब्लोअर (भंडा-फोड़ करने वाला) एडवर्ड स्नोडेन ने भागकर हाँगकाँग में शरण ले ली, जिससे वो यूनाइटेड स्टेट्स के अधिकारियों की पकड़ में नहीं आ सके। पूर्व सीआईए अधिकारी स्नोडेन अभी मॉस्को में निर्वासन काट रहे हैं।
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ईदी अमीन (1925–2003)
- 1979 में ताक़त छिन जाने के बाद, युगाँडा का सैन्य तानाशाह और राष्ट्रपति ईदी अमीन सऊदी अरब भाग गया। जहाँ उसने अपनी बाक़ी ज़िंदगी बिताई। इतिहास के सबसे ज़ालिम तानाशाहों में ईदी अमीन का नाम शुमार किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अपने राज में उसने 500,000 से ज़्यादा लोगों की जान ली थी।
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चार्ली चैप्लिन (1889–1977)
- चार्ली चैप्लिन का आत्म-निर्वासन 1952 में शुरू हुआ। जब 1952 में चार्ली इंग्लैंड गए और वापस लौटने पर उन्हें पता चला कि उनका यूनाइटेड स्टेट्स का री-एंट्री वीज़ा (पुन: प्रवेश वीज़ा) रद्द कर दिया गया है। जिसके बाद वो स्विटज़रलैंड में बस गए। केवल 1972 में एक बार वे अकेडमी अवार्ड लेने के लिए अमेरिका आए।
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मार्लेन डीट्रिक (1901–1992)
- मशहूर जर्मन-अमेरिकी एक्ट्रेस मार्लेन डीट्रिच ने 1930 के दशक में हॉलीवुड में काम करने के लिए बर्लिन छोड़ दिया था। जिसके बाद जर्मनी में नाज़ी सत्ता में आ गए। जिसके कारण उन्होंने हमेशा के लिए विदेश में रहने का विकल्प चुना। वो केवल एक बार 1960 में एक कंसर्ट के लिए जर्मनी गई थीं।
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विक्टर ह्यूगो (1802–1885)
- फ्राँसीसी लेखक और राजनेता विक्टर ह्यूगो को उनके नॉवेल 'द हंचबैक ऑफ़ नॉट्रे-डैम (1831)' और 'लेज़ मिज़रेबल्स (1862)' के लिए जाना जाता है। 1851 में नेपोलियन तृतीय के पतन के बाद विक्टर को ग़द्दारी के आरोप में देश निकाला दे दिया गया था। ह्यूगो ने पहले ब्रुसेल्स और फिर जर्सी में शरण लेने की कोशिश की। अंत में उन्हें ग्वेर्नसी (चैनल आइलैंड) पर शरण मिली।
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जियाकामो कैसेनोवा (1725–1798)
- इटली के डिप्लोमेट, जासूस, लेखक और विमेनाइज़र जियाकामो कैसेनोवा को 1756 में ज़बरदस्ती वेनिस निर्वासित कर दिया गया। जहाँ वे जेल से भाग गए। आख़िर में, बोहेमिया में बसने से पहले वह सालों तक यूरोप में इधर-उधर घूमते रहे।
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अल्बर्ट आइंस्टाइन (1879–1955)
- जर्मनी में जन्मे भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन को, सबसे असरदार और अब तक के सबसे महान वैज्ञानिक के रूप में जाना जाता है। 1933 में वे जर्मनी से भाग गए। बेल्जियम पहुँचकर उन्होंने अपनी नागरिकता त्यागने का ऐलान किया और यूनाइटेड स्टेट्स जाने से पहले कुछ समय तक वो वहीं रहे। इसके बाद वे जीवन भर अमेरिका में ही रहे।
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लियोन त्रोत्स्की (1879 –1940)
- सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख व्यक्ति लियोन ने देखा कि लेनिन की मौत के बाद उनकी ताक़त देश में कम हो रही है। उनका सोचना सही था, क्योंकि कुछ समय बाद ही स्टालिन ने उन्हें निर्वासित कर दिया। इसलिए, वे मैक्सिको चले गए, जहाँ उन्होंने सोवियत तानाशाह स्टालिन के ख़िलाफ़ मार्क्सवादी विपक्ष की कमान संभाली। बाद में त्रात्स्की का मेक्सिको में क़त्ल कर दिया गया। उन्हें 'क्रेमलिन असेसिन' के नाम से मशहूर एक क़ातिल ने बर्फ़ काटने वाली कुल्हाड़ी से मार डाला था।
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कार्ल मार्क्स (1818–1883)
- जर्मनी में जन्मे कार्ल मार्क्स मशहूर दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार और समाजशास्त्री थे। मार्क्स को 1845 में अपनी राजनैतिक विचारधारा फैलाने के आरोप में जर्मनी और फ्राँस, दोनों जगह से निकालकर ब्रुसेल्स में निर्वासित कर दिया गया था। जून, 1849 में मार्क्स लंदन चले गए, जहाँ उन्होंने अपना बाक़ी जीवन गुज़ारा। उनकी क़ब्र हाईगेट सेमेट्री में है।
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फ़्रेडरिक एंगेल्स (1820–1895)
- कार्ल मार्क्स के सबसे क़रीबी दोस्त और सहयोगी एंगेल्स को भी ब्रुसेल्स में शरण लेनी पड़ी थी। ब्रुसेल्स में ही 'ला मेसन डु साइग्ने (द स्वॉन टेवर्न)' है, जहाँ उन्होंने मार्क्स के साथ मिलकर 'कम्युनिस्ट मेनिफ़ेस्टो' नामक किताब लिखी थी। एंगेल्स ने इंग्लैंड में भी अपना निर्वासन बिताया, जहाँ 1895 में लंदन में उनकी मौत हो गई।
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दाँते (1265–1321)
- 1302 में 'डिवाइन कॉमेडी' के लेखक दाँते एलिगियरी को जुर्माना न भरने के कारण फ्लोरेंस से निर्वासित कर दिया गया। वापस लौट आने पर उन्हें ज़िंदा जलाने की धमकी दी गई। दाँते ने अपना बाक़ी जीवन पूरे इटली में घूमकर और अलग-अलग शहरों में रहते हुए बिताया। इसी दौरान उन्होंने अपनी सबसे बेहतरीन किताब लिखी, जिसे मध्य युग की कविता की सबसे महत्वपूर्ण किताब माना जाता है।
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लुई बुनुएल (1900–1983)
- स्पेनिश-मैक्सिकन फिल्म निर्माता लुई बुनुएल ने अपना अधिकतर जीवन निर्वासन में बिताया। शुरू में उन्होंने अपने देश में ही रहकर काम किया, जिसमें सिविल वॉर का समय भी शामिल है। उन्होंने फ्राँस, यूनाइटेड स्टेट्स में भी समय बिताया। आख़िर में उन्हें मैक्सिको में शरण मिली, जहाँ पर 20वीं सदी के सबसे शानदार और बेहतरीन सिनेमा निर्माता के रूप में उनका जीवन शुरू हुआ।
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ब्रतोल्त ब्रेख़्त (1898–1956)
- 1933 में एडॉल्फ़ हिटलर के सत्ता में आने के बाद, जर्मनी के थिएटर आर्टिस्ट, नाटककार और कवि ब्रेख़्त को आपना देश छोड़ना पड़ा। तब, स्वीडन जाने से पहले उन्होंने यूनाइटेड स्टेट्स में अपना समय बिताया। जहाँ उनकी मार्क्सवादी विचारधारा के कारण एफ़बीआई उनके पीछे पड़ गई। वह 1948 में यूरोप लौट आए और 1956 में अपनी मौत होने तक पूर्वी बर्लिन में रहे।
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मोहम्मद रज़ा पहलवी (1919–1980)
- 1979 में इस्लामिक क्रांति शुरू होने के बाद ईरान के अंतिम शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी देश छोड़कर भाग गए। वह सीधा इजिप्ट (मिस्र) पहुँचे और उसके बाद उन्होंने मोरक्को में अपना समय बिताया। आख़िर में वो मैक्सिको में बस गए। अपनी कुछ दिनों की यूनाइटेड स्टेट्स की यात्रा के दौरान वो पनामा भी गए। लाइलाज कैंसर हो जाने पर उन्होंने मजबूर होकर दोबारा मिस्र में शरण माँगी। जहाँ 1980 में काहिरा में उनकी मौत हो गई।
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इमेल्डा मार्कोस
- इमेल्डा मार्कोस के राष्ट्रपति पति फ़र्डिनेंड मार्कोस के शासन को फ़िलिपींस के इतिहास का अब तक का सबसे भ्रष्ट, अजीब और ज़ालिम शासन माना जाता है। 1986 में जब फ़िलीपींस में क्रांति हुई, तो यह दंपत्ति हवाई भाग गया। फ़र्डिनेंड की निर्वासन में ही मौत हो गई, जबकि इमेल्डा 1999 में वापस फ़िलीपींस लौट आईं।
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दलाई लामा
- दलाई लामा 1959 से भारत में निर्वासन में अपना जीवन गुज़ार रहे हैं। तिब्बती विद्रोह के चलते उन्हें चीन ने देश निकाला दे दिया था।
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हुआन पेरॉन (1895–1974)
- 1955 में सैन्य तख़्तापलट के बाद अर्जेंटीना के राष्ट्रपति हुआन पेरॉन को वेनेजुएला और स्पेन में 18 साल का निर्वासन बिताना पड़ा। 18 साल बाद 1973 में उनके देश वापस लौटने पर, लगभग 3 मिलियन लोग ब्यूनस ऑयर्स में उनके स्वागत के लिए इकट्ठा हुए थे।
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एरिस्टोटल/ अरस्तू (384–322 ईसापूर्व)
- अपने पूर्व शिष्य सिकंदर महान की मौत के बाद अरस्तू ने अपने मर्ज़ी से एथेंस छोड़कर जाने का विकल्प चुना। अरस्तू को एथेनियन- विरोधी और मैसेडोनियन समर्थक माना जाता था। सुकरात के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अरस्तू ने ग्रीस की राजधानी छोड़ दी औऱ अपना बाक़ी जीवन यूबोइया आइलैंड के चेल्सिस में बिताया।
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जीन जाक रूसो (1712–1778)
- जेनेवा के दार्शनिक, लेखक और संगीतकार रूसो, ज्ञानोदय के समय पर बहुत अधिक सक्रिय थे। उनके दृढ़ विचार, रूढ़िवादियों के विचारों का विरोध करते थे। उन्होंने फ्राँस में, स्विटज़रलैंड की सीमा के पास रहने का विकल्प चुना। 1762 में, उनकी किताब 'एमाइल (ऑन एजुकेशन)' प्रकाशित हुई, जिस पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया गया। जिसके बाद उन्हें कुछ समय के लिए स्विटज़रलैंड और फिर फ्राँस से भी निर्वासित कर दिया गया।
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बेनज़ीर भुट्टो (1953–2007)
- बेनज़ीर भुट्टो ने अपने जीवन के बहुत से साल अपनी मर्ज़ी से निर्वासन में बिताए। वह निर्वासन के दौरान अधिकतर लंदन और दुबई में रहीं। यह पाकिस्तानी नेत्री 1988 से लेकर 1990 तक और 1993 से 1996 तक पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं। 2007 में रावलपिंडी में एक राजनैतिक रैली के दौरान उनकी हत्या कर दी गई।
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अलेक्ज़ेंड्रे डुमास (1802–1870)
- फ्राँसीसी उपन्यासकार और नाटककार अलेक्ज़ेंड्रे डुमास को उनके उपन्यास 'द काउंट ऑफ़ मॉन्टे क्रिस्टो' और 'द थ्री मस्कीटियर्स' के लिए जाना जाता है। कर्ज़दारों से बचने के लिए वे 1851 में देश छोड़ कर ब्रुसेल्स भाग गए। दो साल बाद कर्ज़ चुका कर वो वापस पेरिस लौट आए।
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एवो मोरालेस
- एवो मोरालेस, 2006 से लेकर 2019 तक बोलिविया के 65वें राष्ट्रपति रहे। नवंबर 2019 में उन्हें चुनावों में धोखाधड़ी के आरोपों में देश निकाला दे दिया गया था। जहाँ से वो मैक्सिको चले गए। बोलीविया वापस लौटने से पहले उन्होंने अर्जेंटीना में एक साल निर्वासन में बिताया।
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रोमन पोलन्स्की - एक नाबालिग़ के यौन शोषण के आरोप में रोमन पोलन्स्की की गिरफ़्तारी का मामला बेहद सुर्ख़ियों में रहा था। 1978 में, सज़ा सुनाए जाने से पहले वो देश छोड़कर यूनाइटेड स्टेट्स भाग गए और ज़्यादातर जीवन फ्राँस में ही बिताया। तब से वे फ्राँसीसी नागरिक होने के नाते, प्रत्यर्पण से बचे हुए हैं।
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बेनेडिक्ट ऑर्नोल्ड (1740–1801)
- बेनेडिक्ट ऑर्नोल्ड, अमेरिकी सेना के एक अधिकारी थे, जिन्होंने अमेरिकन रिवोल्यूशनरी वॉर (अमेरिकी क्रांति) के दौरान अपनी सेवाएँ दी थीं। ब्रिटिश शत्रुओं के लिए उनकी सहानुभूति के चलते वो पाला बदलकर ब्रिटेन की तरफ़ चले गए। युद्ध में वह बच गए और उन्होंने अपना बाक़ी जीवन इंग्लैंड में बिताया। यूनाइटेड स्टेट्स में उन्हें ग़द्दारी का दूसरा नाम कहा जाता है।
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लुसियस अनेयस सेनेका (65 ईसापूर्व–4 ईसापूर्व)
- राजा क्लॉडियस ने, सेनेका के नाम से जाने जाने वाले इस रोमन नाटककार को कैलिगुला की बहन से बलात्कार के आरोप में निर्वासित करके कॉर्सिका भेज दिया था। सेनेका ने रोम वापस बुलाए जाने से पहले 8 साल कॉर्सिका आइलैंड पर बिताए।
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च्यांग काई शेक (1887–1975)
- च्यांग काई-शेक का नाम अधिकतर लोग नहीं जानते। च्यांग काई-शेक ने 1928 से लेकर 1975 में अपनी मौत से पहले चीन गणराज्य और जनरिलिस्मो के राष्ट्रपति के रूप में सेवाएँ दीं। 1949 में, माओत्से तुंग और कम्युनिस्टो के साथ संघर्ष होने के बाद उन्होंने ताइवान में निर्वासन बिताते हुए शासन चलाया। वह कभी भी अपने देश नहीं लौटे।
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कन्फ़्यूशियस ( 551 ईसापूर्व–479 ईसापूर्व)
- चीनी दार्शनिक कन्फ़्यूशियस ने अपना अधिकांश जीवन निर्वासन में बिताया। उन्होंने एक राजनयिक के रूप में जीवन की शुरुआत की थी, लेकिन वहाँ के भ्रष्टाचार के चलते उनका जल्दी ही मोह भंग हो गया। उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया और उसके बाद 13 साल चीन की सड़कों पर बिताए। इस दौरान, उन्होंने चीन की विभिन्न अदालतों का दौरा किया, जहाँ उन्होंने अदालतों को उनके राजनैतिक सिद्धांतों के बारे में बताया, लेकिन अदालतों ने उनके सिद्धांतों को नकार दिया। तब, उन्होंने दर्शन पढ़ाना शुरू कर दिया और एक नया परिप्रेक्ष्य विकसित किया, जिसे आज कन्फ़्यूशियसवाद के नाम से जाना जाता है। कन्फ़्यूशियसवाद, एक प्राचीन चीनी विश्वास है, जिसमें नैतिकता और व्यक्तिगत मूल्यों को महत्व दिया जाता है।
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पाब्लो नेरूदा (1904–1973)
- चिली के कवि, राजनयिक और कम्युनिस्ट समर्थक नेरूदा को 1948 में अपना देश छोड़कर भागना पड़ा। अलग-अलग यूरोपियन देशों की यात्रा करने के बाद 1952 में वो वापस चिली लौटे। 1971 में, नोबेल मिलने पर दिए गए अपने वक्तव्य में उन्होंने निर्वासन के दिनों को याद किया था।
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जोसेफ़ ब्रॉडस्की (1940–1996)
- सोवियत में जन्मे जोसेफ़ ब्रॉडस्की पर 1963 में 'लेनिनग्राड अख़बार' ने 'अश्लील और सोवियत विरोधी' होने का आरोप लगाते हुए उनकी निंदा की थी। जिसके बाद उन पर सोवियत अधिकारियों ने बहुत अत्याचार किए और 1972 में उन्हें एक जहाज़ में बिठाकर ज़बरदस्ती देश निकाला दे दिया गया। 1987 में ब्रॉडस्की को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। 1991 में उन्हें 'यूनाइटेड स्टेट्स पोइट लॉरेट' पुरस्कार दिया गया।
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ड्यूक ऑफ विंडसर (1894–1972)
- इतिहास में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें बहुत से राजाओं व अंग्रेज़ी और यूरोपियन राजघरानों के लोगों को निर्वासित किया गया है। आधुनिक युग में ब्रिटेन में एक बड़ी संवैधानिक स्थिति तब पैदा हुई, जब एडवर्ड तृतीय के नाम से जाने जाने वाले विंडसर के ड्यूक ने अपने पद को त्याग दिया। उन्होंने और डचेस ऑफ सिंपसन के नाम से जानी जाने वाली उनकी पत्नी वॉलेस सिंपसन (1896-1986) ने अपना बाक़ी जीवन फ्राँस में बिताया।
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इन मशहूर हस्तियों को किया गया था निर्वासित
- आमतौर पर, निर्वासन का मतलब किसी को राजनैतिक कारणों से या सज़ा के तौर पर, उसके ख़ुद के देश से बाहर निकालना होता है। इतिहास के सबसे प्रसिद्ध निर्वासनों की सूची बहुत लंबी और हैरान करने वाली है। इस लिस्ट में राजा, वैज्ञानिक, राजनेता, तानाशाह, कवि, जासूस और क्रांतिकारी भी शामिल हैं। इनमें से कुछ लोग जान बचाने के लिए ख़ुद देश से बाहर भाग गए और कुछ ने अपने देश में रहना चुना। इनमें से कुछ लोग ऐसे भी थे, जो देश वापस लौटने का इंतज़ार करते-करते मर गए। इस गैलरी पर क्लिक करें और जानें वे कौन सी महिलाएँ या पुरूष थे, जिन्हें उनकी मर्ज़ी से या ज़बरदस्ती विदेशी ज़मीन पर निर्वासित कर दिया गया।
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नेपोलियन बोर्नापोर्ट (1769–1821)
- यह इतिहास का सबसे मशहूर निर्वासन है। नेपोलियन बोर्नापोर्ट को फ्राँस से दो बार निर्वासित किया गया था। 1813 में, लगातार कई अपमानजनक हारों के बाद उन्हें एल्बा के मेडिटेरेनियन आइलैंड पर वक़्त बिताना पड़ा। इसके बाद नेपोलियन कुछ समय के लिए सत्ता पर क़ाबिज हुए, लेकिन फिर से उन्हें युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। इस बार उन्हें 1815 में सेंट हेलेना आइलैंड पर निर्वासित कर दिया गया। 1821 में दक्षिण अटलांटिक के इसी आइलैंड पर उनकी मौत हो गई।
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एडवर्ड स्नोडेन
- कुख्यात अमेरिकी व्हिसलब्लोअर (भंडा-फोड़ करने वाला) एडवर्ड स्नोडेन ने भागकर हाँगकाँग में शरण ले ली, जिससे वो यूनाइटेड स्टेट्स के अधिकारियों की पकड़ में नहीं आ सके। पूर्व सीआईए अधिकारी स्नोडेन अभी मॉस्को में निर्वासन काट रहे हैं।
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ईदी अमीन (1925–2003)
- 1979 में ताक़त छिन जाने के बाद, युगाँडा का सैन्य तानाशाह और राष्ट्रपति ईदी अमीन सऊदी अरब भाग गया। जहाँ उसने अपनी बाक़ी ज़िंदगी बिताई। इतिहास के सबसे ज़ालिम तानाशाहों में ईदी अमीन का नाम शुमार किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अपने राज में उसने 500,000 से ज़्यादा लोगों की जान ली थी।
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चार्ली चैप्लिन (1889–1977)
- चार्ली चैप्लिन का आत्म-निर्वासन 1952 में शुरू हुआ। जब 1952 में चार्ली इंग्लैंड गए और वापस लौटने पर उन्हें पता चला कि उनका यूनाइटेड स्टेट्स का री-एंट्री वीज़ा (पुन: प्रवेश वीज़ा) रद्द कर दिया गया है। जिसके बाद वो स्विटज़रलैंड में बस गए। केवल 1972 में एक बार वे अकेडमी अवार्ड लेने के लिए अमेरिका आए।
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मार्लेन डीट्रिक (1901–1992)
- मशहूर जर्मन-अमेरिकी एक्ट्रेस मार्लेन डीट्रिच ने 1930 के दशक में हॉलीवुड में काम करने के लिए बर्लिन छोड़ दिया था। जिसके बाद जर्मनी में नाज़ी सत्ता में आ गए। जिसके कारण उन्होंने हमेशा के लिए विदेश में रहने का विकल्प चुना। वो केवल एक बार 1960 में एक कंसर्ट के लिए जर्मनी गई थीं।
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विक्टर ह्यूगो (1802–1885)
- फ्राँसीसी लेखक और राजनेता विक्टर ह्यूगो को उनके नॉवेल 'द हंचबैक ऑफ़ नॉट्रे-डैम (1831)' और 'लेज़ मिज़रेबल्स (1862)' के लिए जाना जाता है। 1851 में नेपोलियन तृतीय के पतन के बाद विक्टर को ग़द्दारी के आरोप में देश निकाला दे दिया गया था। ह्यूगो ने पहले ब्रुसेल्स और फिर जर्सी में शरण लेने की कोशिश की। अंत में उन्हें ग्वेर्नसी (चैनल आइलैंड) पर शरण मिली।
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जियाकामो कैसेनोवा (1725–1798)
- इटली के डिप्लोमेट, जासूस, लेखक और विमेनाइज़र जियाकामो कैसेनोवा को 1756 में ज़बरदस्ती वेनिस निर्वासित कर दिया गया। जहाँ वे जेल से भाग गए। आख़िर में, बोहेमिया में बसने से पहले वह सालों तक यूरोप में इधर-उधर घूमते रहे।
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अल्बर्ट आइंस्टाइन (1879–1955)
- जर्मनी में जन्मे भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन को, सबसे असरदार और अब तक के सबसे महान वैज्ञानिक के रूप में जाना जाता है। 1933 में वे जर्मनी से भाग गए। बेल्जियम पहुँचकर उन्होंने अपनी नागरिकता त्यागने का ऐलान किया और यूनाइटेड स्टेट्स जाने से पहले कुछ समय तक वो वहीं रहे। इसके बाद वे जीवन भर अमेरिका में ही रहे।
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लियोन त्रोत्स्की (1879 –1940)
- सोवियत संघ में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख व्यक्ति लियोन ने देखा कि लेनिन की मौत के बाद उनकी ताक़त देश में कम हो रही है। उनका सोचना सही था, क्योंकि कुछ समय बाद ही स्टालिन ने उन्हें निर्वासित कर दिया। इसलिए, वे मैक्सिको चले गए, जहाँ उन्होंने सोवियत तानाशाह स्टालिन के ख़िलाफ़ मार्क्सवादी विपक्ष की कमान संभाली। बाद में त्रात्स्की का मेक्सिको में क़त्ल कर दिया गया। उन्हें 'क्रेमलिन असेसिन' के नाम से मशहूर एक क़ातिल ने बर्फ़ काटने वाली कुल्हाड़ी से मार डाला था।
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कार्ल मार्क्स (1818–1883)
- जर्मनी में जन्मे कार्ल मार्क्स मशहूर दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार और समाजशास्त्री थे। मार्क्स को 1845 में अपनी राजनैतिक विचारधारा फैलाने के आरोप में जर्मनी और फ्राँस, दोनों जगह से निकालकर ब्रुसेल्स में निर्वासित कर दिया गया था। जून, 1849 में मार्क्स लंदन चले गए, जहाँ उन्होंने अपना बाक़ी जीवन गुज़ारा। उनकी क़ब्र हाईगेट सेमेट्री में है।
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फ़्रेडरिक एंगेल्स (1820–1895)
- कार्ल मार्क्स के सबसे क़रीबी दोस्त और सहयोगी एंगेल्स को भी ब्रुसेल्स में शरण लेनी पड़ी थी। ब्रुसेल्स में ही 'ला मेसन डु साइग्ने (द स्वॉन टेवर्न)' है, जहाँ उन्होंने मार्क्स के साथ मिलकर 'कम्युनिस्ट मेनिफ़ेस्टो' नामक किताब लिखी थी। एंगेल्स ने इंग्लैंड में भी अपना निर्वासन बिताया, जहाँ 1895 में लंदन में उनकी मौत हो गई।
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दाँते (1265–1321)
- 1302 में 'डिवाइन कॉमेडी' के लेखक दाँते एलिगियरी को जुर्माना न भरने के कारण फ्लोरेंस से निर्वासित कर दिया गया। वापस लौट आने पर उन्हें ज़िंदा जलाने की धमकी दी गई। दाँते ने अपना बाक़ी जीवन पूरे इटली में घूमकर और अलग-अलग शहरों में रहते हुए बिताया। इसी दौरान उन्होंने अपनी सबसे बेहतरीन किताब लिखी, जिसे मध्य युग की कविता की सबसे महत्वपूर्ण किताब माना जाता है।
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लुई बुनुएल (1900–1983)
- स्पेनिश-मैक्सिकन फिल्म निर्माता लुई बुनुएल ने अपना अधिकतर जीवन निर्वासन में बिताया। शुरू में उन्होंने अपने देश में ही रहकर काम किया, जिसमें सिविल वॉर का समय भी शामिल है। उन्होंने फ्राँस, यूनाइटेड स्टेट्स में भी समय बिताया। आख़िर में उन्हें मैक्सिको में शरण मिली, जहाँ पर 20वीं सदी के सबसे शानदार और बेहतरीन सिनेमा निर्माता के रूप में उनका जीवन शुरू हुआ।
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ब्रतोल्त ब्रेख़्त (1898–1956)
- 1933 में एडॉल्फ़ हिटलर के सत्ता में आने के बाद, जर्मनी के थिएटर आर्टिस्ट, नाटककार और कवि ब्रेख़्त को आपना देश छोड़ना पड़ा। तब, स्वीडन जाने से पहले उन्होंने यूनाइटेड स्टेट्स में अपना समय बिताया। जहाँ उनकी मार्क्सवादी विचारधारा के कारण एफ़बीआई उनके पीछे पड़ गई। वह 1948 में यूरोप लौट आए और 1956 में अपनी मौत होने तक पूर्वी बर्लिन में रहे।
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मोहम्मद रज़ा पहलवी (1919–1980)
- 1979 में इस्लामिक क्रांति शुरू होने के बाद ईरान के अंतिम शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी देश छोड़कर भाग गए। वह सीधा इजिप्ट (मिस्र) पहुँचे और उसके बाद उन्होंने मोरक्को में अपना समय बिताया। आख़िर में वो मैक्सिको में बस गए। अपनी कुछ दिनों की यूनाइटेड स्टेट्स की यात्रा के दौरान वो पनामा भी गए। लाइलाज कैंसर हो जाने पर उन्होंने मजबूर होकर दोबारा मिस्र में शरण माँगी। जहाँ 1980 में काहिरा में उनकी मौत हो गई।
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इमेल्डा मार्कोस
- इमेल्डा मार्कोस के राष्ट्रपति पति फ़र्डिनेंड मार्कोस के शासन को फ़िलिपींस के इतिहास का अब तक का सबसे भ्रष्ट, अजीब और ज़ालिम शासन माना जाता है। 1986 में जब फ़िलीपींस में क्रांति हुई, तो यह दंपत्ति हवाई भाग गया। फ़र्डिनेंड की निर्वासन में ही मौत हो गई, जबकि इमेल्डा 1999 में वापस फ़िलीपींस लौट आईं।
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दलाई लामा
- दलाई लामा 1959 से भारत में निर्वासन में अपना जीवन गुज़ार रहे हैं। तिब्बती विद्रोह के चलते उन्हें चीन ने देश निकाला दे दिया था।
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हुआन पेरॉन (1895–1974)
- 1955 में सैन्य तख़्तापलट के बाद अर्जेंटीना के राष्ट्रपति हुआन पेरॉन को वेनेजुएला और स्पेन में 18 साल का निर्वासन बिताना पड़ा। 18 साल बाद 1973 में उनके देश वापस लौटने पर, लगभग 3 मिलियन लोग ब्यूनस ऑयर्स में उनके स्वागत के लिए इकट्ठा हुए थे।
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एरिस्टोटल/ अरस्तू (384–322 ईसापूर्व)
- अपने पूर्व शिष्य सिकंदर महान की मौत के बाद अरस्तू ने अपने मर्ज़ी से एथेंस छोड़कर जाने का विकल्प चुना। अरस्तू को एथेनियन- विरोधी और मैसेडोनियन समर्थक माना जाता था। सुकरात के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अरस्तू ने ग्रीस की राजधानी छोड़ दी औऱ अपना बाक़ी जीवन यूबोइया आइलैंड के चेल्सिस में बिताया।
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जीन जाक रूसो (1712–1778)
- जेनेवा के दार्शनिक, लेखक और संगीतकार रूसो, ज्ञानोदय के समय पर बहुत अधिक सक्रिय थे। उनके दृढ़ विचार, रूढ़िवादियों के विचारों का विरोध करते थे। उन्होंने फ्राँस में, स्विटज़रलैंड की सीमा के पास रहने का विकल्प चुना। 1762 में, उनकी किताब 'एमाइल (ऑन एजुकेशन)' प्रकाशित हुई, जिस पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया गया। जिसके बाद उन्हें कुछ समय के लिए स्विटज़रलैंड और फिर फ्राँस से भी निर्वासित कर दिया गया।
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बेनज़ीर भुट्टो (1953–2007)
- बेनज़ीर भुट्टो ने अपने जीवन के बहुत से साल अपनी मर्ज़ी से निर्वासन में बिताए। वह निर्वासन के दौरान अधिकतर लंदन और दुबई में रहीं। यह पाकिस्तानी नेत्री 1988 से लेकर 1990 तक और 1993 से 1996 तक पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं। 2007 में रावलपिंडी में एक राजनैतिक रैली के दौरान उनकी हत्या कर दी गई।
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अलेक्ज़ेंड्रे डुमास (1802–1870)
- फ्राँसीसी उपन्यासकार और नाटककार अलेक्ज़ेंड्रे डुमास को उनके उपन्यास 'द काउंट ऑफ़ मॉन्टे क्रिस्टो' और 'द थ्री मस्कीटियर्स' के लिए जाना जाता है। कर्ज़दारों से बचने के लिए वे 1851 में देश छोड़ कर ब्रुसेल्स भाग गए। दो साल बाद कर्ज़ चुका कर वो वापस पेरिस लौट आए।
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एवो मोरालेस
- एवो मोरालेस, 2006 से लेकर 2019 तक बोलिविया के 65वें राष्ट्रपति रहे। नवंबर 2019 में उन्हें चुनावों में धोखाधड़ी के आरोपों में देश निकाला दे दिया गया था। जहाँ से वो मैक्सिको चले गए। बोलीविया वापस लौटने से पहले उन्होंने अर्जेंटीना में एक साल निर्वासन में बिताया।
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रोमन पोलन्स्की - एक नाबालिग़ के यौन शोषण के आरोप में रोमन पोलन्स्की की गिरफ़्तारी का मामला बेहद सुर्ख़ियों में रहा था। 1978 में, सज़ा सुनाए जाने से पहले वो देश छोड़कर यूनाइटेड स्टेट्स भाग गए और ज़्यादातर जीवन फ्राँस में ही बिताया। तब से वे फ्राँसीसी नागरिक होने के नाते, प्रत्यर्पण से बचे हुए हैं।
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बेनेडिक्ट ऑर्नोल्ड (1740–1801)
- बेनेडिक्ट ऑर्नोल्ड, अमेरिकी सेना के एक अधिकारी थे, जिन्होंने अमेरिकन रिवोल्यूशनरी वॉर (अमेरिकी क्रांति) के दौरान अपनी सेवाएँ दी थीं। ब्रिटिश शत्रुओं के लिए उनकी सहानुभूति के चलते वो पाला बदलकर ब्रिटेन की तरफ़ चले गए। युद्ध में वह बच गए और उन्होंने अपना बाक़ी जीवन इंग्लैंड में बिताया। यूनाइटेड स्टेट्स में उन्हें ग़द्दारी का दूसरा नाम कहा जाता है।
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लुसियस अनेयस सेनेका (65 ईसापूर्व–4 ईसापूर्व)
- राजा क्लॉडियस ने, सेनेका के नाम से जाने जाने वाले इस रोमन नाटककार को कैलिगुला की बहन से बलात्कार के आरोप में निर्वासित करके कॉर्सिका भेज दिया था। सेनेका ने रोम वापस बुलाए जाने से पहले 8 साल कॉर्सिका आइलैंड पर बिताए।
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च्यांग काई शेक (1887–1975)
- च्यांग काई-शेक का नाम अधिकतर लोग नहीं जानते। च्यांग काई-शेक ने 1928 से लेकर 1975 में अपनी मौत से पहले चीन गणराज्य और जनरिलिस्मो के राष्ट्रपति के रूप में सेवाएँ दीं। 1949 में, माओत्से तुंग और कम्युनिस्टो के साथ संघर्ष होने के बाद उन्होंने ताइवान में निर्वासन बिताते हुए शासन चलाया। वह कभी भी अपने देश नहीं लौटे।
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कन्फ़्यूशियस ( 551 ईसापूर्व–479 ईसापूर्व)
- चीनी दार्शनिक कन्फ़्यूशियस ने अपना अधिकांश जीवन निर्वासन में बिताया। उन्होंने एक राजनयिक के रूप में जीवन की शुरुआत की थी, लेकिन वहाँ के भ्रष्टाचार के चलते उनका जल्दी ही मोह भंग हो गया। उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया और उसके बाद 13 साल चीन की सड़कों पर बिताए। इस दौरान, उन्होंने चीन की विभिन्न अदालतों का दौरा किया, जहाँ उन्होंने अदालतों को उनके राजनैतिक सिद्धांतों के बारे में बताया, लेकिन अदालतों ने उनके सिद्धांतों को नकार दिया। तब, उन्होंने दर्शन पढ़ाना शुरू कर दिया और एक नया परिप्रेक्ष्य विकसित किया, जिसे आज कन्फ़्यूशियसवाद के नाम से जाना जाता है। कन्फ़्यूशियसवाद, एक प्राचीन चीनी विश्वास है, जिसमें नैतिकता और व्यक्तिगत मूल्यों को महत्व दिया जाता है।
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पाब्लो नेरूदा (1904–1973)
- चिली के कवि, राजनयिक और कम्युनिस्ट समर्थक नेरूदा को 1948 में अपना देश छोड़कर भागना पड़ा। अलग-अलग यूरोपियन देशों की यात्रा करने के बाद 1952 में वो वापस चिली लौटे। 1971 में, नोबेल मिलने पर दिए गए अपने वक्तव्य में उन्होंने निर्वासन के दिनों को याद किया था।
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जोसेफ़ ब्रॉडस्की (1940–1996)
- सोवियत में जन्मे जोसेफ़ ब्रॉडस्की पर 1963 में 'लेनिनग्राड अख़बार' ने 'अश्लील और सोवियत विरोधी' होने का आरोप लगाते हुए उनकी निंदा की थी। जिसके बाद उन पर सोवियत अधिकारियों ने बहुत अत्याचार किए और 1972 में उन्हें एक जहाज़ में बिठाकर ज़बरदस्ती देश निकाला दे दिया गया। 1987 में ब्रॉडस्की को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। 1991 में उन्हें 'यूनाइटेड स्टेट्स पोइट लॉरेट' पुरस्कार दिया गया।
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ड्यूक ऑफ विंडसर (1894–1972)
- इतिहास में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें बहुत से राजाओं व अंग्रेज़ी और यूरोपियन राजघरानों के लोगों को निर्वासित किया गया है। आधुनिक युग में ब्रिटेन में एक बड़ी संवैधानिक स्थिति तब पैदा हुई, जब एडवर्ड तृतीय के नाम से जाने जाने वाले विंडसर के ड्यूक ने अपने पद को त्याग दिया। उन्होंने और डचेस ऑफ सिंपसन के नाम से जानी जाने वाली उनकी पत्नी वॉलेस सिंपसन (1896-1986) ने अपना बाक़ी जीवन फ्राँस में बिताया।
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इन मशहूर हस्तियों को किया गया था निर्वासित
इतिहास के सबसे मशहूर निर्वासन
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आमतौर पर, निर्वासन का मतलब किसी को राजनैतिक कारणों से या सज़ा के तौर पर, उसके ख़ुद के देश से बाहर निकालना होता है। इतिहास के सबसे प्रसिद्ध निर्वासनों की सूची बहुत लंबी और हैरान करने वाली है। इस लिस्ट में राजा, वैज्ञानिक, राजनेता, तानाशाह, कवि, जासूस और क्रांतिकारी भी शामिल हैं। इनमें से कुछ लोग जान बचाने के लिए ख़ुद देश से बाहर भाग गए और कुछ ने अपने देश में रहना चुना। इनमें से कुछ लोग ऐसे भी थे, जो देश वापस लौटने का इंतज़ार करते-करते मर गए।
इस गैलरी पर क्लिक करें और जानें वे कौन सी महिलाएँ या पुरूष थे, जिन्हें उनकी मर्ज़ी से या ज़बरदस्ती विदेशी ज़मीन पर निर्वासित कर दिया गया।
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