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इतिहास के कुछ ऐसे ख़ौफ़नाक अपराध, जिन्होंने इंसानियत को शर्मसार कर दिया
- दुनिया में कुछ ऐसे शब्द हैं, जिन्हें सुनकर दिल दहल जाता है। ऐसा ही एक शब्द है- नरसंहार। यह शब्द ख़ुद में दर्द, नुकसान और अनकही पीड़ा समेटे हुए हैं। नरसंहार मानव इतिहास का सबसे काला अध्याय है, जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। इस गैलरी में हम आपको आधुनिक इतिहास के सबसे दुखद और ख़ौफ़नाक पलों के बारे में गहराई से बताएंगे। आप जानेंगे, उन नरसंहारों के बारे में जिन्होंने समूची दुनिया को हिलाकर रख दिया था और जिनका दुख आज तक लोगों के दिलों में मौजूद है। आइए, एक सुनहरे कल की कल्पना करते हुए, अतीत के दुखद काले पन्नों पर नज़र डालते हैं।
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नरसंहार के ख़ौफ़ को कभी भुलाया नहीं जा सकता
- नरसंहार केवल एक शब्द नहीं है। यह एक डरावनी सच्चाई है, जिसने इंसानियत को दाग़दार किया है। इससे पता चलता है कि नस्ल, जाति, धर्म या राष्ट्रीयता के आधार पर कुछ ख़ास लोगों का किस तरह जानबूझकर और व्यवस्थित ढंग से विनाश किया जाता है।
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नरसंहार के ख़ौफ़ को कभी भुलाया नहीं जा सकता
- अमेरिका ने कुछ अत्याचार भरे कृत्यों को नरसंहार की श्रेणी में शामिल किया है। इनमें सामूहिक हत्या, गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाना, किसी के रहने के लिए असहनीय परिस्थितियाँ तैयार करना, नए बच्चों को जन्म देने से रोकना और बच्चों को माता-पिता से अलग करना भी शामिल है।
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नरसंहार के ख़ौफ़ को कभी भुलाया नहीं जा सकता
- इतिहास को स्वीकार करने और समझने से ही उसे दोहराने से बचा जा सकता है। नरसंहार किसी दूसरी दुनिया की घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि वे आज भी हमारी दुनिया में मौजूद हैं। हमें एक बेहतर कल के लिए इन भयावह घटनाओं से सीखना चाहिए।
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बांग्लादेश लिबरेशन वॉर (बांग्लादेश मुक्ति संग्राम)
- बांग्लादेश मुक्ति संग्राम एक इतिहास को कलंकित करने वाली घटना है। 1971 में, पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश के बंगाली विद्रोहियों के ख़िलाफ़ 'ऑपरेशन सर्चलाइट' चलाया था। इस अभियान की क्रूरता की कोई सीमाएँ नहीं थीं। यह अभियान क़त्ल और यौन शोषण का नंगा नाच था।
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बांग्लादेश लिबरेशन वॉर (बांग्लादेश मुक्ति संग्राम)
- इससे लाखों लोगों का जीवन हमेशा के लिए बर्बाद हो गया। इस अभियान में बंगाली महिलाओं के साथ ऐसे अपराध किए गए कि सुनने वालों की रूह काँप जाएगी।
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रवांडा नरसंहार
- 1944 में हुआ रवांडा नरसंहार, 20वीं सदी की सबसे भयावह घटनाओं में से एक है।
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रवांडा नरसंहार
- इस नरसंहार में रवांडा के मूल निवासी 'हुतुस' जाति के लोगों ने देश के अल्पसंख्यक समुदाय 'तुत्सी' के लोगों को बर्बरता के साथ मार डाला। इस दौरान तुत्सी जाति को लोगों को दर्दनाक तरीक़ों से खुलेआम मारा गया। 99 दिनों तक चले इस नरसंहार में लगभग 10 लाख लोग मारे गए थे।
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बोस्निया नरसंहार
- 1995 में बोस्नियाई युद्ध के दौरान हुए नरसंहार ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया था। इसमें कुछ ही दिनों में हज़ारों लोग मारे गए। यह नरसंहार जातीय संघर्ष की भयावहता का प्रमाण था।
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रोहिंग्या नरसंहार
- रोहिंग्या नरसंहार 21वीं सदी का सबसे ख़ौफ़नाक नरसंहार था। 2016-17 में ज़ेनोफ़ोबिया, नस्लवाद और धार्मिक पूर्वाग्रहों के कारण बर्मा सरकार ने इस नरंसहार को बढ़ावा दिया। इस नरसंहार में मुस्लिम अल्पसंख्यक 'रोहिंग्या' लोगों की सामूहिक हत्या कर दी गई थी। इसके दौरान रोहिंग्या लोगों को देश से निकल जाने पर मजबूर कर दिया गया था।
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रोहिंग्या नरसंहार
- इसके कारण 700,000 से अधिक रोहिंग्या लोगों को अपना देश छोड़कर आस-पास के देशों में शरण लेनी पड़ी। बांग्लादेश में स्थित कुटुपॉलोंग को दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर माना जाता है, जहाँ 5 लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं। इस नरसंहार की भयावहता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 25,000 रोहिंग्या लोग ऐसे थे, जिन्हें म्यांमार की सीमा पार करने से पहले मार डाला गया।
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पूर्वी तिमोर पर इंडोनेशिया का क़ब्ज़ा
- पूर्वी तिमोर (तिमोर-लेस्ते) को 1975 में ही पुर्तगाल से आज़ादी मिली थी। जिसके एक साल बाद 1976 में ही इंडोनेशिया ने पूर्वी तिमोर पर क़ब्ज़ा करना शुरू किया। क़ब्ज़ा करने की यह कोशिशें 1999 तक चलीं। इन दो दशकों में इंडोनेशियाई सेना ने शांति-युद्ध के नाम पर युद्ध अपराध, सामूहिक हत्या और नरंसहार जैसे कामों को अंजाम दिया।
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पूर्वी तिमोर पर इंडोनेशिया का क़ब्ज़ा
- तिमोर में अधिकांश हिंसा क़ब्ज़े के शुरूआती सालों में हुई, जब 1970 के दशक में तिमोर राजनैतिक उथल-पुथल से गुज़र रहा था। यह हिंसा इतना भयावह थी कि सदी के अंत तक भी लोग इससे उबर नहीं पाए। कुल मिलाकर पूर्वी तिमोर में 100,000 से लेकर 300,000 तक लोग मार गए।
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अन्फ़ाल अभियान
- अन्फ़ाल अभियान से इराक़ में कुर्दिश लोगों को बहुत पीड़ा का सामना करना पड़ा। 1988 में, शांति के नाम पर बेरहमी से कुर्दिश लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। यह नरसंहार इराक़ के इतिहास पर एक काला धब्बा है।
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अन्फ़ाल अभियान
- इस नरसंहार में इराकी सैनिकों ने कुर्दिश बड़े व बच्चों के अलावा, कुर्दिश लड़ाकों और आम लोगों की भी जान ली थी। ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक, अन्फ़ाल अभियान में लगभग 100,000 कुर्दिश लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
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लीबिया नरसंहार
- 20वीं सदी की शुरुआत में इटली ने लीबिया को अपना उपनिवेश बनाने की कोशिश की। जिसके चलते बेहद हिंसा हुई। दूसरे इटालो-सेनुस्सी युद्ध के दौरान मौत का नंगा नाच हुआ। इसमें जबरन बंधुआ मज़दूरी कराना और अंधाधुंध हत्याएँ जैसे अपराध किए गए।
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लीबिया नरसंहार
- उपरोक्त सभी कारकों के कारण लीबिया के मूल निवासी जाति समूहों को नरसंहार का सामना करना पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि इस नरसंहार में 80,000 से अधिक लोगों की जान गई थी।
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होलोकॉस्ट
- जर्मनी के नाज़ियों द्वारा किए गए इस नरसंहार को आज भी अमानवीयता का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हुए इस नरसंहार में लगभग 6 मिलियन से अधिक यहूदियों व अन्य लोगों को नाज़ियों ने व्यवस्थित ढंग से योजना बनाकर मार डाला था।
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होलोडोमोर
- होलोडार एक मानव निर्मित अकाल था, जिसके पीछे तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन का हाथ था। इस अकाल में लाखों यूक्रेनी लोग मारे गए। इस बात पर आज भी बहस होती है कि इसे नरसंहार के दायरे में रखा जाए या न रखा जाए। लेकिन, इस बात में कोई शक नहीं है कि यूक्रेन के इतिहास पर इस अकाल का बड़ा असर पड़ा।
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कंबोडिया नरसंहार
- कंबोडियाई गृह युद्ध ने खमेर रूज के शासन की भयावहता को दुनिया के सामने ज़ाहिर कर दिया। 1975 से 1979 के बीच हुए इस नरसंहार में, लगभग 20 लाख कंबोडियाई लोगों को सामूहिक हत्या और बंधुआ मज़दूरी का शिकार होना पड़ा। यह भूतिया मैदान आज भी उस भयानक समय की दास्तान सुना रहे हैं।
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कैलीफ़ॉर्निया नरसंहार
- कैलीफ़ॉर्निया में सोने की खोज से जुड़ी कहानियों में कुछ दर्दनाक किस्से भी शामिल हैं। सोने की खोज के दौरान मूल अमेरिकी लोगों का नरसंहार करना, उनमें से एक है। 1846 से लेकर 1873 तक कैलीफ़ॉर्निया में बसने वाले बाहरी लोगों ने ज़ुल्म की एक नई दास्ताँ लिखी, जिसे सोचकर आज भी लोग सिहर उठते हैं।
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सर्कसियन नरसंहार
- अक्सर लोगों द्वारा इसे नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। सर्कसियन नरसंहार 19वीं सदी में रूसी साम्राज्य के विस्तार के दौरान हुआ था।
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सर्कसियन नरसंहार
- इस नरसंहार के दौरान एक ख़ास आबादी को सांस्कृतिक विनाश का सामना करना पड़ा। जिसके कारण बहुत से लोगों को देश छोड़कर जाना पड़ा और अनगिनत लोग मारे गए। यह नरसंहार राजाओं की महत्वकाँक्षाओं के कारण होने वाले विनाश की याद दिलाता है।
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आर्मेनियाई जनसंहार
- 20वीं शताब्दी की शुरुआत में आर्मेनियाई नरसंहार हुआ। इस प्रथम विश्व युद्ध के दौरान घटी एक बड़ी घटना माना जाता है। इसमें ऑटोमन साम्राज्य के जातीय शुद्धता के पागलपन के चलते 10 लाख आर्मेनियाई लोग मारे गए। मौत की भयावहता और आंतक से भरे इस शासन ने आर्मेनियाई इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।
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दारफ़ुर नरसंहार
- दारफ़ुर नरंसहार, नरसंहार के इतिहास में एक बड़ी घटना है। यह नरंसहार 21वीं सदी में भी लगातार हो रहा है।
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दारफ़ुर नरसंहार
- 2003 से सूडानी सरकार अपने वफ़ादार सैनिकों के साथ मिलकर दारफ़ुरी लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतार रही है। इस नरंसहार में अब तक अनगिनत जानें जा चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों के आक्रोश के बावजूद यह नरसंहार अभी भी जारी है।
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इतिहास के कुछ ऐसे ख़ौफ़नाक अपराध, जिन्होंने इंसानियत को शर्मसार कर दिया
- दुनिया में कुछ ऐसे शब्द हैं, जिन्हें सुनकर दिल दहल जाता है। ऐसा ही एक शब्द है- नरसंहार। यह शब्द ख़ुद में दर्द, नुकसान और अनकही पीड़ा समेटे हुए हैं। नरसंहार मानव इतिहास का सबसे काला अध्याय है, जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। इस गैलरी में हम आपको आधुनिक इतिहास के सबसे दुखद और ख़ौफ़नाक पलों के बारे में गहराई से बताएंगे। आप जानेंगे, उन नरसंहारों के बारे में जिन्होंने समूची दुनिया को हिलाकर रख दिया था और जिनका दुख आज तक लोगों के दिलों में मौजूद है। आइए, एक सुनहरे कल की कल्पना करते हुए, अतीत के दुखद काले पन्नों पर नज़र डालते हैं।
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नरसंहार के ख़ौफ़ को कभी भुलाया नहीं जा सकता
- नरसंहार केवल एक शब्द नहीं है। यह एक डरावनी सच्चाई है, जिसने इंसानियत को दाग़दार किया है। इससे पता चलता है कि नस्ल, जाति, धर्म या राष्ट्रीयता के आधार पर कुछ ख़ास लोगों का किस तरह जानबूझकर और व्यवस्थित ढंग से विनाश किया जाता है।
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नरसंहार के ख़ौफ़ को कभी भुलाया नहीं जा सकता
- अमेरिका ने कुछ अत्याचार भरे कृत्यों को नरसंहार की श्रेणी में शामिल किया है। इनमें सामूहिक हत्या, गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाना, किसी के रहने के लिए असहनीय परिस्थितियाँ तैयार करना, नए बच्चों को जन्म देने से रोकना और बच्चों को माता-पिता से अलग करना भी शामिल है।
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नरसंहार के ख़ौफ़ को कभी भुलाया नहीं जा सकता
- इतिहास को स्वीकार करने और समझने से ही उसे दोहराने से बचा जा सकता है। नरसंहार किसी दूसरी दुनिया की घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि वे आज भी हमारी दुनिया में मौजूद हैं। हमें एक बेहतर कल के लिए इन भयावह घटनाओं से सीखना चाहिए।
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बांग्लादेश लिबरेशन वॉर (बांग्लादेश मुक्ति संग्राम)
- बांग्लादेश मुक्ति संग्राम एक इतिहास को कलंकित करने वाली घटना है। 1971 में, पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश के बंगाली विद्रोहियों के ख़िलाफ़ 'ऑपरेशन सर्चलाइट' चलाया था। इस अभियान की क्रूरता की कोई सीमाएँ नहीं थीं। यह अभियान क़त्ल और यौन शोषण का नंगा नाच था।
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बांग्लादेश लिबरेशन वॉर (बांग्लादेश मुक्ति संग्राम)
- इससे लाखों लोगों का जीवन हमेशा के लिए बर्बाद हो गया। इस अभियान में बंगाली महिलाओं के साथ ऐसे अपराध किए गए कि सुनने वालों की रूह काँप जाएगी।
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रवांडा नरसंहार
- 1944 में हुआ रवांडा नरसंहार, 20वीं सदी की सबसे भयावह घटनाओं में से एक है।
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रवांडा नरसंहार
- इस नरसंहार में रवांडा के मूल निवासी 'हुतुस' जाति के लोगों ने देश के अल्पसंख्यक समुदाय 'तुत्सी' के लोगों को बर्बरता के साथ मार डाला। इस दौरान तुत्सी जाति को लोगों को दर्दनाक तरीक़ों से खुलेआम मारा गया। 99 दिनों तक चले इस नरसंहार में लगभग 10 लाख लोग मारे गए थे।
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बोस्निया नरसंहार
- 1995 में बोस्नियाई युद्ध के दौरान हुए नरसंहार ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया था। इसमें कुछ ही दिनों में हज़ारों लोग मारे गए। यह नरसंहार जातीय संघर्ष की भयावहता का प्रमाण था।
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रोहिंग्या नरसंहार
- रोहिंग्या नरसंहार 21वीं सदी का सबसे ख़ौफ़नाक नरसंहार था। 2016-17 में ज़ेनोफ़ोबिया, नस्लवाद और धार्मिक पूर्वाग्रहों के कारण बर्मा सरकार ने इस नरंसहार को बढ़ावा दिया। इस नरसंहार में मुस्लिम अल्पसंख्यक 'रोहिंग्या' लोगों की सामूहिक हत्या कर दी गई थी। इसके दौरान रोहिंग्या लोगों को देश से निकल जाने पर मजबूर कर दिया गया था।
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रोहिंग्या नरसंहार
- इसके कारण 700,000 से अधिक रोहिंग्या लोगों को अपना देश छोड़कर आस-पास के देशों में शरण लेनी पड़ी। बांग्लादेश में स्थित कुटुपॉलोंग को दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर माना जाता है, जहाँ 5 लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं। इस नरसंहार की भयावहता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 25,000 रोहिंग्या लोग ऐसे थे, जिन्हें म्यांमार की सीमा पार करने से पहले मार डाला गया।
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पूर्वी तिमोर पर इंडोनेशिया का क़ब्ज़ा
- पूर्वी तिमोर (तिमोर-लेस्ते) को 1975 में ही पुर्तगाल से आज़ादी मिली थी। जिसके एक साल बाद 1976 में ही इंडोनेशिया ने पूर्वी तिमोर पर क़ब्ज़ा करना शुरू किया। क़ब्ज़ा करने की यह कोशिशें 1999 तक चलीं। इन दो दशकों में इंडोनेशियाई सेना ने शांति-युद्ध के नाम पर युद्ध अपराध, सामूहिक हत्या और नरंसहार जैसे कामों को अंजाम दिया।
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पूर्वी तिमोर पर इंडोनेशिया का क़ब्ज़ा
- तिमोर में अधिकांश हिंसा क़ब्ज़े के शुरूआती सालों में हुई, जब 1970 के दशक में तिमोर राजनैतिक उथल-पुथल से गुज़र रहा था। यह हिंसा इतना भयावह थी कि सदी के अंत तक भी लोग इससे उबर नहीं पाए। कुल मिलाकर पूर्वी तिमोर में 100,000 से लेकर 300,000 तक लोग मार गए।
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अन्फ़ाल अभियान
- अन्फ़ाल अभियान से इराक़ में कुर्दिश लोगों को बहुत पीड़ा का सामना करना पड़ा। 1988 में, शांति के नाम पर बेरहमी से कुर्दिश लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। यह नरसंहार इराक़ के इतिहास पर एक काला धब्बा है।
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अन्फ़ाल अभियान
- इस नरसंहार में इराकी सैनिकों ने कुर्दिश बड़े व बच्चों के अलावा, कुर्दिश लड़ाकों और आम लोगों की भी जान ली थी। ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक, अन्फ़ाल अभियान में लगभग 100,000 कुर्दिश लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
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- 20वीं सदी की शुरुआत में इटली ने लीबिया को अपना उपनिवेश बनाने की कोशिश की। जिसके चलते बेहद हिंसा हुई। दूसरे इटालो-सेनुस्सी युद्ध के दौरान मौत का नंगा नाच हुआ। इसमें जबरन बंधुआ मज़दूरी कराना और अंधाधुंध हत्याएँ जैसे अपराध किए गए।
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लीबिया नरसंहार
- उपरोक्त सभी कारकों के कारण लीबिया के मूल निवासी जाति समूहों को नरसंहार का सामना करना पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि इस नरसंहार में 80,000 से अधिक लोगों की जान गई थी।
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- जर्मनी के नाज़ियों द्वारा किए गए इस नरसंहार को आज भी अमानवीयता का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हुए इस नरसंहार में लगभग 6 मिलियन से अधिक यहूदियों व अन्य लोगों को नाज़ियों ने व्यवस्थित ढंग से योजना बनाकर मार डाला था।
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- होलोडार एक मानव निर्मित अकाल था, जिसके पीछे तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन का हाथ था। इस अकाल में लाखों यूक्रेनी लोग मारे गए। इस बात पर आज भी बहस होती है कि इसे नरसंहार के दायरे में रखा जाए या न रखा जाए। लेकिन, इस बात में कोई शक नहीं है कि यूक्रेन के इतिहास पर इस अकाल का बड़ा असर पड़ा।
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- कंबोडियाई गृह युद्ध ने खमेर रूज के शासन की भयावहता को दुनिया के सामने ज़ाहिर कर दिया। 1975 से 1979 के बीच हुए इस नरसंहार में, लगभग 20 लाख कंबोडियाई लोगों को सामूहिक हत्या और बंधुआ मज़दूरी का शिकार होना पड़ा। यह भूतिया मैदान आज भी उस भयानक समय की दास्तान सुना रहे हैं।
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- कैलीफ़ॉर्निया में सोने की खोज से जुड़ी कहानियों में कुछ दर्दनाक किस्से भी शामिल हैं। सोने की खोज के दौरान मूल अमेरिकी लोगों का नरसंहार करना, उनमें से एक है। 1846 से लेकर 1873 तक कैलीफ़ॉर्निया में बसने वाले बाहरी लोगों ने ज़ुल्म की एक नई दास्ताँ लिखी, जिसे सोचकर आज भी लोग सिहर उठते हैं।
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- अक्सर लोगों द्वारा इसे नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। सर्कसियन नरसंहार 19वीं सदी में रूसी साम्राज्य के विस्तार के दौरान हुआ था।
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सर्कसियन नरसंहार
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दारफ़ुर नरसंहार
- दारफ़ुर नरंसहार, नरसंहार के इतिहास में एक बड़ी घटना है। यह नरंसहार 21वीं सदी में भी लगातार हो रहा है।
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- 2003 से सूडानी सरकार अपने वफ़ादार सैनिकों के साथ मिलकर दारफ़ुरी लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतार रही है। इस नरंसहार में अब तक अनगिनत जानें जा चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों के आक्रोश के बावजूद यह नरसंहार अभी भी जारी है।
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