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कैसा होगा हमारे बच्चों का भविष्य?
- एक बच्चे की ज़िंदगी का सफ़र उसी वक़्त शुरू हो जाता है जब वह पैदा होता है। आठ साल की उम्र से पहले एक बच्चे का शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक विकास उसकी आने वाली ज़िन्दगी की नींव रख देती है। हालांकि, दुनिया भर में लाखों बच्चों को उनके जीवन के इन ख़ास सालों के दौरान बुनियादी देखभाल तक भी नहीं मिल पाती है। इस तरह बच्चों को नज़र-अंदाज़ करने का नतीजा अच्छा नहीं होता है। सपोर्ट और प्यार की कमी बच्चे का भविष्य शुरू होने से पहले ही उसे गर्त में डाल सकती है। इसलिए माता-पिता को बच्चों के साथ वक़्त बिताना चाहिए, ताकि बच्चों का अच्छे से विकास हो सके। इसके अलावा, किसी बच्चे को बड़े होने के लिए एक सुरक्षित और ख़ुशहाल माहौल देने की ज़िम्मेदारी समाज की भी उतनी ही है जितनी उसके माता- पिता की है। चिंता की बात यह है कि बच्चों को नज़र-अंदाज़ किये जाने की कुछ वजहों, जैसे कि ग़रीबी और क्लाइमेट चेंज, पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। ऐसे में, हमारे बच्चों का भविष्य कैसा होगा और हम इसे कैसे बेहतर और उज्जवल बना सकते हैं? आने वाली पीढ़ी के डर और आशाओं से रू-ब-रू होने के लिए क्लिक करें।
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कैसा होगा भविष्य
- यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रन फ़ंड, यूनिसेफ़ के मुताबिक़ सर्वाइवल, न्यूट्रीशन और एजुकेशन में काफ़ी तरक्की कर लेने के बावजूद आज के बच्चों के भविष्य के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है।
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दुनिया भर के लिए चिंता का विषय
- यूनिसेफ़ के मुताबिक़ क्लाइमेट चेंज, इकोलोजी में बदलाव, लोगों का एक जगह से दूसरी जगह जाकर बसना, युद्ध, असमानता और हमारा वाणिज्यिक दृष्टिकोण बच्चों के स्वास्थ और भविष्य के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है।
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बचपन- एक नाज़ुक वक़्त
- बचपन के शुरुआती साल, जन्म से लेकर आठ साल की उम्र तक, बच्चों के दिमागी विकास के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण होते हैं। इन सालों में सीखी हुई चीज़ें उनकी शिक्षा, व्यवहार और स्वास्थ का आधार तैयार करती हैं।
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ज़िंदगी के बिल्डिंग ब्लॉक्स
- इसके अलावा, शुरूआती सालों में बच्चों की अच्छी परवरिश न केवल उन्हें अपनी ज़िंदगी के लिए तैयार करती है, बल्कि उनसे आगे की पीढ़ी के सफल पालन-पोषण के लिए उन्हें अच्छे पेरेंट्स के रूप में भी तैयार करती है।
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अच्छी शिक्षा के फ़ायदे
- वैसे बच्चे जिन्हें शुरुआती शिक्षा अच्छी मिलती है, वे अपने जीवन में बुलंदियों को छूते हैं।
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बेहतर अकादमिक प्रदर्शन
- शुरुआत के सालों में बेहतर स्कूल जाने या अच्छी शिक्षा मिलने की वजह से बच्चे पढ़ाई लिखाई में अच्छा प्रदर्शन तो करते ही हैं, साथ ही अच्छे कॉलेज या यूनिवर्सिटी में उनके एडमिशन का रास्ता भी खुल जाता है।
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प्रोफ़ेशनल होना
- तेज़ दिमाग ना सिर्फ़ बेहतर करियर के लिहाज़ से ज़रूरी होता है, बल्कि यह जीवन भर के लिए एक ऐसा सपोर्ट सिस्टम बन जाता है जिससे आप ज़िंदगी भर आर्थिक रूप से मज़बूत रहते हैं।
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साफ़-सुथरी ज़िंदगी
- पढ़े-लिखे युवाओं में आपराधिक गतिविधि कम पाई जाती हैं।
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सुरक्षित और खुशहाल ज़िंदगी
- हर एक बच्चा अच्छे पालन-पोषण और ख़ुशहाल ज़िंदगी का हक़दार है। बच्चों को एक सुरक्षित और प्यार भरे माहौल में बड़े होने का मौक़ा मिलना चाहिए। हालांकि, कई युवा इन बुनियादी ज़रूरतों से भी वंचित हैं।
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सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल्स
- 2015 में यूनाइटेड नेशन जेनरल असेंबली द्वारा तैयार किए गए सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल्स (एसडीजी) का मिशन स्टेटमेंट है: “वर्तमान और भविष्य में लोगों और प्लानेट के लिए शांति और समृद्धि का एक शेयर्ड ब्लूप्रिंट।“
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लड़ाई अभी बाकी है..
- दुख की बात है कि पाँच साल बाद बीत जाने की बाद भी सिर्फ़ कुछ ही देश ऐसे हैं जिन्होंने ग़रीबी हटाने, भुखमरी कम करने, अच्छी शिक्षा और लैंगिक समानता जैसे लक्ष्यों तक पहुँचने में सफलता पाई है।
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सबसे पहले बच्चे
- सस्टेनेबिलिटी और मानवता को आगे ले जाने के इस एजेंडे में 0-18 साल के उम्र के बच्चों को एसडीजी के सेंटर में रखने का सुझाव यूके के लैंसेट आयोग द्वारा पेश किया गया था।
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बच्चों के अधिकारों का बचाव
- इस आयोग ने सरकारों से “इकोलोजिकल और कमर्शियल दबावों को नज़रंदाज़ करते हुए हर एक फ़ील्ड में तालमेल बना कर रखने का आग्रह किया है, ताकि हम अपने बच्चों को उनके अधिकार और एक रहने योग्य ज़मीन दे सकें।“
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ग़रीबी और भुखमरी
- इस आयोग का कहना है कि समाज सफल तभी होता है जब वह अपने बच्चों के अधिकारों की रक्षा करते है। हालाँकि, यह भी सच है कि कई अमीर देशों में भी कई बच्चे भूखे रह जाते हैं या ग़रीबी में अपनी ज़िंदगी बिताने को मजबूर होते हैं।
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हाशिए पर रहने वाला वंचित तबक़ा
- यह ख़ासकर हाशिए पर रहने वाले सोशल ग्रुप्स के लोगों के लिए सच है – जिनमें इंडिजेनस आबादी और एथनिक माइनॉरिटी शामिल हैं।
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हिंसा का प्रभाव
- अमेरिकन डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस के मुताबिक़, 2020 में तकरीबन 60% अमेरिकी बच्चे अपने घरों, स्कूलों या समुदायों में हिंसा, अपराध या दुर्व्यवहार के शिकार बने।
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देखभाल से वंचित
- लैंसेट कमीशन का मानना है कि लाखों बच्चे युद्ध या असुरक्षा से प्रभावित होते हुए बड़े होते हैं। ऐसे में उन्हें सबसे बुनियादी सुविधाएं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य या उनके विकास के लिए ज़रूरी चीज़ें तक मुहैया नहीं हो पातीं हैं। तो, इन हालात को बदलने के लिए क्या किया जा रहा है?
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चिल्ड्रेंस अवेयरनेस मंथ
- 1996 में, अमेरिकी सरकार ने जून को चिल्ड्रेन अवेयरनेस मंथ के रूप में मनाने का फ़ैसला लिया था। जून को उन्होंने इसलिए चुना क्योंकि “जून” बच्चों से जुड़ा हुआ है। यह लैटिन शब्द ‘जुवेनिस’ से लिया गया है, जिसका मतलब “यंग" या “यूथ” होता है।
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एक-साथ काम करने की ज़रूरत
- यह पहल चाइल्ड एब्यूज जैसी चीज़ों को रोकने के लिए सबके साथ मिलकर काम करने की एक अच्छी शुरुआत है।
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चाइल्ड सपोर्ट
- चिल्ड्रेन अवेयरनेस मंथ का उद्देशय बच्चों प्रोत्साहित करना, उनकी मदद करना और उन्हें शिक्षित करना है।
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जीना और खुल कर जीना
- यह लक्ष्य यूनाटेड नेशंस के एसडीजी की नकल करते हैं। इनके तहत, आज और भविष्य में 0-18 साल की उम्र तक बच्चे और किशोर न केवल जीवित रहें, बल्कि अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जी पाएँ। मगर अफ़सोस है कि हक़ीक़त कुछ और ही है।
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पर्यावरण का ख़ास ख़याल
- बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए, धरती को बचाने की हर-मुमकिन कोशिश करनी होगी।
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मौसम में बदलाव और इसका असर
- ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) के मुताबिक़, आने वाली पीढ़ी पर मौसम में बदलाव का असर एक गंभीर वैश्विक मुद्दा बन कर उभरा है। बिन मौसम बरसात, बाढ़, चक्रवात, लू, जंगल की आग की वजह से काफ़ी बच्चों की मौत हो जाती है।
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कोई समाधान नहीं
- बीएमजे ने यह भी बताया कि आज के दौर में क़रीब 920 मिलियन बच्चे पानी की कमी से पीड़ित हैं, जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।
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कुपोषण
- यही नहीं, मौसम में बदलाव की वजह से साल 2030 तक पाँच साल से कम उम्र के 100,000 अतिरिक्त बच्चों की मौत हो सकती हैं।
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बचपन ठहर गया
- मौसम में बदलाव की वजह से परिवारों को एक जगह से दूसरे जगह जबरन माइग्रेट करना पड़ रहा है, जो बच्चों के पारिवारिक जीवन, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में रुकावट या तब्दीली पैदा करता है।
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बच्चों की सुरक्षा
- बीएमजे ने अपील करते हुए कहा है कि आने वाली पीढ़ी के लिए धरती की रक्षा और इसका संरक्षण करने की ज़िम्मेदारी मौजूदा पीढ़ी की है। बच्चों की सुरक्षा हम सभी की ज़िम्मेदारी है। ऐसा केवल जलवायु की रक्षा करके ही किया जा सकता है।
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बचपन को सशक्त बनाना
- हम अपने बच्चों को जागरुक बनाने में अपना सहयोग देकर उन्हें अच्छे इंसान बना सकते हैं। जागरुक होने से बच्चों में आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान बढ़ता है। यह किसी भी ख़ुशहाल और आरामदायक ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरत है।
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सीखने की ललक पैदा करना
- बच्चों को यह समझाना भी ज़रूरी है कि वे अपनी दुनिया के शक्तिशाली रचयिता हैं। ये समझ जाने पर वे खुद ही नई-नई चीज़ें सीखने के लिए उत्साहित रहते हैं, जो उन्हें एक अच्छा स्टूडेंट बनाता है।
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साइकोलॉजिकल डेवलपमेंट
- बच्चों में मनोवैज्ञानिक विकास भी काफ़ी ज़रूरी होता है। यह शारीरिक और दिमागी विकास जितना ही ज़रूरी होता है। मनोवैज्ञानिक विकास, बच्चों में फ़ैसले लेने, विचारधारा बनाने जैसी ज़रूरी ख़ूबियाँ पैदा करता है। यह उनका व्यक्तित्व भी निखारता है।
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कैसा होगा हमारे बच्चों का भविष्य?
- एक बच्चे की ज़िंदगी का सफ़र उसी वक़्त शुरू हो जाता है जब वह पैदा होता है। आठ साल की उम्र से पहले एक बच्चे का शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक विकास उसकी आने वाली ज़िन्दगी की नींव रख देती है। हालांकि, दुनिया भर में लाखों बच्चों को उनके जीवन के इन ख़ास सालों के दौरान बुनियादी देखभाल तक भी नहीं मिल पाती है। इस तरह बच्चों को नज़र-अंदाज़ करने का नतीजा अच्छा नहीं होता है। सपोर्ट और प्यार की कमी बच्चे का भविष्य शुरू होने से पहले ही उसे गर्त में डाल सकती है। इसलिए माता-पिता को बच्चों के साथ वक़्त बिताना चाहिए, ताकि बच्चों का अच्छे से विकास हो सके। इसके अलावा, किसी बच्चे को बड़े होने के लिए एक सुरक्षित और ख़ुशहाल माहौल देने की ज़िम्मेदारी समाज की भी उतनी ही है जितनी उसके माता- पिता की है। चिंता की बात यह है कि बच्चों को नज़र-अंदाज़ किये जाने की कुछ वजहों, जैसे कि ग़रीबी और क्लाइमेट चेंज, पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। ऐसे में, हमारे बच्चों का भविष्य कैसा होगा और हम इसे कैसे बेहतर और उज्जवल बना सकते हैं? आने वाली पीढ़ी के डर और आशाओं से रू-ब-रू होने के लिए क्लिक करें।
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कैसा होगा भविष्य
- यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रन फ़ंड, यूनिसेफ़ के मुताबिक़ सर्वाइवल, न्यूट्रीशन और एजुकेशन में काफ़ी तरक्की कर लेने के बावजूद आज के बच्चों के भविष्य के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है।
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दुनिया भर के लिए चिंता का विषय
- यूनिसेफ़ के मुताबिक़ क्लाइमेट चेंज, इकोलोजी में बदलाव, लोगों का एक जगह से दूसरी जगह जाकर बसना, युद्ध, असमानता और हमारा वाणिज्यिक दृष्टिकोण बच्चों के स्वास्थ और भविष्य के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है।
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बचपन- एक नाज़ुक वक़्त
- बचपन के शुरुआती साल, जन्म से लेकर आठ साल की उम्र तक, बच्चों के दिमागी विकास के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण होते हैं। इन सालों में सीखी हुई चीज़ें उनकी शिक्षा, व्यवहार और स्वास्थ का आधार तैयार करती हैं।
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ज़िंदगी के बिल्डिंग ब्लॉक्स
- इसके अलावा, शुरूआती सालों में बच्चों की अच्छी परवरिश न केवल उन्हें अपनी ज़िंदगी के लिए तैयार करती है, बल्कि उनसे आगे की पीढ़ी के सफल पालन-पोषण के लिए उन्हें अच्छे पेरेंट्स के रूप में भी तैयार करती है।
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अच्छी शिक्षा के फ़ायदे
- वैसे बच्चे जिन्हें शुरुआती शिक्षा अच्छी मिलती है, वे अपने जीवन में बुलंदियों को छूते हैं।
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बेहतर अकादमिक प्रदर्शन
- शुरुआत के सालों में बेहतर स्कूल जाने या अच्छी शिक्षा मिलने की वजह से बच्चे पढ़ाई लिखाई में अच्छा प्रदर्शन तो करते ही हैं, साथ ही अच्छे कॉलेज या यूनिवर्सिटी में उनके एडमिशन का रास्ता भी खुल जाता है।
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प्रोफ़ेशनल होना
- तेज़ दिमाग ना सिर्फ़ बेहतर करियर के लिहाज़ से ज़रूरी होता है, बल्कि यह जीवन भर के लिए एक ऐसा सपोर्ट सिस्टम बन जाता है जिससे आप ज़िंदगी भर आर्थिक रूप से मज़बूत रहते हैं।
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साफ़-सुथरी ज़िंदगी
- पढ़े-लिखे युवाओं में आपराधिक गतिविधि कम पाई जाती हैं।
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सुरक्षित और खुशहाल ज़िंदगी
- हर एक बच्चा अच्छे पालन-पोषण और ख़ुशहाल ज़िंदगी का हक़दार है। बच्चों को एक सुरक्षित और प्यार भरे माहौल में बड़े होने का मौक़ा मिलना चाहिए। हालांकि, कई युवा इन बुनियादी ज़रूरतों से भी वंचित हैं।
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सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल्स
- 2015 में यूनाइटेड नेशन जेनरल असेंबली द्वारा तैयार किए गए सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल्स (एसडीजी) का मिशन स्टेटमेंट है: “वर्तमान और भविष्य में लोगों और प्लानेट के लिए शांति और समृद्धि का एक शेयर्ड ब्लूप्रिंट।“
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लड़ाई अभी बाकी है..
- दुख की बात है कि पाँच साल बाद बीत जाने की बाद भी सिर्फ़ कुछ ही देश ऐसे हैं जिन्होंने ग़रीबी हटाने, भुखमरी कम करने, अच्छी शिक्षा और लैंगिक समानता जैसे लक्ष्यों तक पहुँचने में सफलता पाई है।
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सबसे पहले बच्चे
- सस्टेनेबिलिटी और मानवता को आगे ले जाने के इस एजेंडे में 0-18 साल के उम्र के बच्चों को एसडीजी के सेंटर में रखने का सुझाव यूके के लैंसेट आयोग द्वारा पेश किया गया था।
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बच्चों के अधिकारों का बचाव
- इस आयोग ने सरकारों से “इकोलोजिकल और कमर्शियल दबावों को नज़रंदाज़ करते हुए हर एक फ़ील्ड में तालमेल बना कर रखने का आग्रह किया है, ताकि हम अपने बच्चों को उनके अधिकार और एक रहने योग्य ज़मीन दे सकें।“
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ग़रीबी और भुखमरी
- इस आयोग का कहना है कि समाज सफल तभी होता है जब वह अपने बच्चों के अधिकारों की रक्षा करते है। हालाँकि, यह भी सच है कि कई अमीर देशों में भी कई बच्चे भूखे रह जाते हैं या ग़रीबी में अपनी ज़िंदगी बिताने को मजबूर होते हैं।
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हाशिए पर रहने वाला वंचित तबक़ा
- यह ख़ासकर हाशिए पर रहने वाले सोशल ग्रुप्स के लोगों के लिए सच है – जिनमें इंडिजेनस आबादी और एथनिक माइनॉरिटी शामिल हैं।
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हिंसा का प्रभाव
- अमेरिकन डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस के मुताबिक़, 2020 में तकरीबन 60% अमेरिकी बच्चे अपने घरों, स्कूलों या समुदायों में हिंसा, अपराध या दुर्व्यवहार के शिकार बने।
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देखभाल से वंचित
- लैंसेट कमीशन का मानना है कि लाखों बच्चे युद्ध या असुरक्षा से प्रभावित होते हुए बड़े होते हैं। ऐसे में उन्हें सबसे बुनियादी सुविधाएं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य या उनके विकास के लिए ज़रूरी चीज़ें तक मुहैया नहीं हो पातीं हैं। तो, इन हालात को बदलने के लिए क्या किया जा रहा है?
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चिल्ड्रेंस अवेयरनेस मंथ
- 1996 में, अमेरिकी सरकार ने जून को चिल्ड्रेन अवेयरनेस मंथ के रूप में मनाने का फ़ैसला लिया था। जून को उन्होंने इसलिए चुना क्योंकि “जून” बच्चों से जुड़ा हुआ है। यह लैटिन शब्द ‘जुवेनिस’ से लिया गया है, जिसका मतलब “यंग" या “यूथ” होता है।
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एक-साथ काम करने की ज़रूरत
- यह पहल चाइल्ड एब्यूज जैसी चीज़ों को रोकने के लिए सबके साथ मिलकर काम करने की एक अच्छी शुरुआत है।
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चाइल्ड सपोर्ट
- चिल्ड्रेन अवेयरनेस मंथ का उद्देशय बच्चों प्रोत्साहित करना, उनकी मदद करना और उन्हें शिक्षित करना है।
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जीना और खुल कर जीना
- यह लक्ष्य यूनाटेड नेशंस के एसडीजी की नकल करते हैं। इनके तहत, आज और भविष्य में 0-18 साल की उम्र तक बच्चे और किशोर न केवल जीवित रहें, बल्कि अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जी पाएँ। मगर अफ़सोस है कि हक़ीक़त कुछ और ही है।
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पर्यावरण का ख़ास ख़याल
- बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए, धरती को बचाने की हर-मुमकिन कोशिश करनी होगी।
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मौसम में बदलाव और इसका असर
- ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) के मुताबिक़, आने वाली पीढ़ी पर मौसम में बदलाव का असर एक गंभीर वैश्विक मुद्दा बन कर उभरा है। बिन मौसम बरसात, बाढ़, चक्रवात, लू, जंगल की आग की वजह से काफ़ी बच्चों की मौत हो जाती है।
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कोई समाधान नहीं
- बीएमजे ने यह भी बताया कि आज के दौर में क़रीब 920 मिलियन बच्चे पानी की कमी से पीड़ित हैं, जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।
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कुपोषण
- यही नहीं, मौसम में बदलाव की वजह से साल 2030 तक पाँच साल से कम उम्र के 100,000 अतिरिक्त बच्चों की मौत हो सकती हैं।
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बचपन ठहर गया
- मौसम में बदलाव की वजह से परिवारों को एक जगह से दूसरे जगह जबरन माइग्रेट करना पड़ रहा है, जो बच्चों के पारिवारिक जीवन, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में रुकावट या तब्दीली पैदा करता है।
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बच्चों की सुरक्षा
- बीएमजे ने अपील करते हुए कहा है कि आने वाली पीढ़ी के लिए धरती की रक्षा और इसका संरक्षण करने की ज़िम्मेदारी मौजूदा पीढ़ी की है। बच्चों की सुरक्षा हम सभी की ज़िम्मेदारी है। ऐसा केवल जलवायु की रक्षा करके ही किया जा सकता है।
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बचपन को सशक्त बनाना
- हम अपने बच्चों को जागरुक बनाने में अपना सहयोग देकर उन्हें अच्छे इंसान बना सकते हैं। जागरुक होने से बच्चों में आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान बढ़ता है। यह किसी भी ख़ुशहाल और आरामदायक ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरत है।
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सीखने की ललक पैदा करना
- बच्चों को यह समझाना भी ज़रूरी है कि वे अपनी दुनिया के शक्तिशाली रचयिता हैं। ये समझ जाने पर वे खुद ही नई-नई चीज़ें सीखने के लिए उत्साहित रहते हैं, जो उन्हें एक अच्छा स्टूडेंट बनाता है।
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साइकोलॉजिकल डेवलपमेंट
- बच्चों में मनोवैज्ञानिक विकास भी काफ़ी ज़रूरी होता है। यह शारीरिक और दिमागी विकास जितना ही ज़रूरी होता है। मनोवैज्ञानिक विकास, बच्चों में फ़ैसले लेने, विचारधारा बनाने जैसी ज़रूरी ख़ूबियाँ पैदा करता है। यह उनका व्यक्तित्व भी निखारता है।
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चिंता की बात यह है कि बच्चों को नज़र-अंदाज़ किये जाने की कुछ वजहों, जैसे कि ग़रीबी और क्लाइमेट चेंज, पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। ऐसे में, हमारे बच्चों का भविष्य कैसा होगा और हम इसे कैसे बेहतर और उज्जवल बना सकते हैं?
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