जब तक मार्केट रहेगी, तब तक मार्केट में मंदी आती रहेगी। कभी कोई जंग शुरू होने पर, कभी जंग ख़त्म होने पर या लोन चुकता न कर पाने की स्थिति में और कभी-कभी यूँही बिना किसी वजह के इकोनोमिक रिसेशन (आर्थिक मंदी) दुनिया को अपनी चपेट में लेता रहा है। ऐसा अक्सर होता रहा है और आगे भी होता रहेगा। कुछ मंदी इतनी छोटी थीं कि उन्हें भूलना आसान था, लेकिन कुछ ऐसी थीं जिन्होंने दुनिया को बदल कर रख दिया था, जैसे द ग्रेट डिप्रेशन या 2008 का मार्केट क्रैश।
दुनिया के इतिहास की सबसे भयावह आर्थिक मंदियों के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें।
1772 का ब्रिटिश क्रेडिट क्राइसिस बैंक ऑफ इंग्लैंड से जुड़ा था। इसे स्कॉलर्स और इकोनोमिस्ट्स ने पहला मॉडर्न बैंकिंग क्राइसिस करार दिया था। दिक़्क़त तब शुरू हुई, जब बैंकर अलेक्जेंडर फोर्डिस, भाग कर फ्रांस चला गया। वह पूरी तरह क़र्ज़ में डूबा हुआ था।
बैंकर के भाग जाने की बात पता चलते ही लोगों में दहशत फैल गई। लोग उन बैंकों से अपना कैश निकालने के लिए दौड़ने लगे जिन बैंक्स में लिक्विड फंड्स नहीं थे। इसके चलते, इंग्लैंड और पूरे यूरोप में लगभग 30 बैंकों का पतन हो गया।
संयुक्त राज्य अमेरिका में पेपर करेंसी लाने का फैसला 1789 के कॉपर पैनिक का ही नतीजा था। तांबे वाली अर्थव्यवस्था में लोग भारी मात्रा में नकली तांबे के सिक्कों को इस्तेमाल करने लगे थे, जिसकी वजह से अमेरिका की आम जनता का तांबे पर से विश्वास उठ गया था।
नेपोलियन ने फ़्रांस का क्रांतिकारी युद्ध जीत लिया। इस युद्ध से संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था को आर्थिक बूस्ट मिल रहा था, जो ख़त्म हो गया था।इस घटना ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को एक अजीब सी स्थिति में डाल दिया था। ऊपर से समुद्री डाकू (ख़ासकर नार्थ अफ़्रीका के मुस्लिम समुद्री डाकू) के आंतक ने अमेरिका में आर्थिक मंदी सी स्थिति पैदा कर दी थी। जिसकी वजह से पहले बार्बरी युद्ध की शुरुआत हुई।
1812 का युद्ध शुरू होने के बाद, कुछ महीनों तक अमेरिका में गंभीर आर्थिक मंदी छाई रही। युद्ध शुरू हो जाने पर, अमेरिका को मशीन बनाने का काम मिल गया, जिसने अमेरिका की अर्थव्यवस्था को जल्दी ही खतरे से बाहर निकाल लिया।
स्कॉट्समैन ग्रेगर मैकग्रेगर ने 1825 में एक ऐसा स्कैम किया, जिसकी वजह से देश में छोटे स्तर की मंदी आ गई। मैकग्रेगर ने लोगों को सेन्ट्रल अमेरिका में पोयाइस नाम की एक सुन्दर जगह पर निवेश करने और लैंड ग्रांट्स खरीदने के लिए राजी कर हजारों कमाए। जबकि हक़ीकत में ऐसी कोई जगह थी ही नहीं।
कुछ वक़्त बाद, जब निवेशकों ने इन्वेस्ट करने के लिए ब्रिटिश शेयर मार्केट का रुख़ किया, मैकग्रेगर ने बाज़ार में नकली सरकारी बॉण्ड रख दिए। जब उनकी पोल खुली, तो ब्रिटिश इकॉनोमी में भारी खलबली मच गई और लोग किसी भी चीज़ में इन्वेस्ट करने से डरने लगे। क्योंकि काफ़ी लोग मैकग्रेगर के घोटाले में अपनी जीवन भर की जमा पूँजी खो चुके थे।
1837 की मंदी अमेरिकी सरकार और बैंकिंग सिस्टम की गलतियों की वज़ह से आई थी। तेजी से विकास और प्राकृतिक संसाधनों के निजीकरण की वजह से ज़मीन के दाम स्थिर नहीं थे। साउथ में स्लेवरी के बल पर चल रही कपास की खेती पर टिकी अर्थव्यवस्था जर्जर हो गई और जनता का अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम पर से विश्वास उठ गया, जिसके वजह से बड़ी तादाद में लोगों ने बैंकों से अपनी सारी जमा पूँजी निकाल ली।
1873 का पैनिक उस वक़्त संयुक्त राज्य अमेरिका की सबसे बड़ी फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन ‘जे. कुक एंड कंपनी’ के बंद होने की वजह से हुआ था। इस कंपनी ने नार्थ पैसिफिक रेलवे में बिना कोई रिटर्न देखे बहुत सारा पैसा लगा रखा था।
इस घटना के बाद अमेरिका छह साल की लंबी मंदी से गुजरा, जिसे उस समय द ग्रेट डिप्रेशन (महामंदी) का नाम दिया गया था। 1930 में हुए रिसेशन के बाद, 1873-79 की मंदी को लॉन्ग डिप्रेशन के रूप में जाना जाने लगा।
1882 में रेल इंडस्ट्री के पतन के कारण शुरू हुई यह मंदी संयुक्त राज्य अमेरिका के दो बैंकिंग इंस्टीट्यूशन, ‘मरीन नेशनल बैंक’ और ‘ग्रांट एंड वार्ड फर्म’ के पतन हो जाने के बाद और भी बिगड़ गई। दिवालिया होने की कगार पर पहुंचे बैंकों को न्यूयॉर्क क्लियरिंग हाउस ने उस वक़्त बड़े पैमाने पर राहत राशि दी थी।
1907 की मंदी थोड़े वक़्त के लिए ही सही लेकिन भयावह आर्थिक मंदी थी जिसके बाद दुनिया भर के कई इंस्टीट्यूशन का काम-धंधा चौपट हो गया था।
1907 की मंदी एक साल से ज्यादा लंबी चली और इसी की वज़ह से 1913 में फेडरल रिजर्व बनाया गया।
पहला विश्व युद्ध ख़त्म होने तक अमेरिका बुरी तरह कर्ज में डूब चुका था। इसके घरेलु उत्पादन में भी भारी कमी आ गई थी। 1920 में कीमतों में 37% की गिरावट के साथ उस साल की जी.पी.डी. में 38% की गिरावट आई, जिससे यह साल अमेरिका के इतिहास में सबसे खराब वित्त वर्ष में से एक बन गया।
युद्ध के बाद इस तरह की मंदी का अनुमान था, क्योंकि युद्ध के समय मशीनों का उत्पादन काफी बड़े स्तर पर होता था। हालांकि, पहले विश्व युद्ध के बाद की मंदी ने विशेष रूप से असर डाला लेकिन बहुत जल्द ही 1920 की मंदी के बाद उपभोक्तावाद तेजी से नई ऊँचाइयों को छूने लगा। रोअरिंग ट्वेंटीज़ जल्द ही अपने पूरे शबाब पर पहुँच चुका था।
आधुनिक इतिहास में अब तक का सबसे ख़राब फाइनेंसिल क्राइसिस मानी जाने वाली महामंदी, 1929 में हुए वॉल स्ट्रीट मार्केट क्रैश के साथ शुरू हुई थी। इसने अमेरिकियों की एक पूरी नस्ल को बर्बाद कर दिया था।
फेडेरल सरकार किसी भी तरह की सहायता देने में नाकाम रही थी।अमेरिका ने उस दौर में भुखमरी, आर्थिक अस्थिरता और ऐसी बेरोज़गारी देखी, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। अमेरिकी इतिहास में बेरोज़गारी का यह सबसे बुरा दौर था। बेरोज़गारी लगभग 25% तक पहुँच गई थी। अकेले 1933 में ही तक़रीबन 4,000 बैंक बंद हो गए थे।
यह 1900 के दशक की सबसे खराब मंदी में से एक थी। 1937 में आई इस मंदी को आमतौर पर रूजवेल्ट मंदी के रूप में जाना जाता है। यह मंदी आंशिक रूप से फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट की नई डील पॉलिसी के कारण आई थी।
नई डील ने ख़ुद संयुक्त राज्य अमेरिका को पिछली मंदी से बाहर तो निकाल लिया था, लेकिन इससे संघीय बजट में काफ़ी कमी आ गई थी। इससे कॉंग्रेस नाराज हो गई और उन्हें व्यापक ऑस्टेरिटी उपाय पेश करने पड़े। इससे जनता और व्यापारिक बाजार घबरा गए।
गैस संकट चौथे अरब-इजरायल युद्ध के साथ आया था। यह संकट पश्चिमी देशों द्वारा जंग को प्रोत्साहित करने और प्रतिबंध लगाए जाने की वजह से आया था, जिन्होंने आर्थिक और सैन्य रूप से इजरायल का समर्थन किया था। इसके अलावा, तेल उत्पादक अरब राज्यों ने अरब गठबंधन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए इन पश्चिमी देशों पर प्रतिबंध लगा दिए थे, जिस का नेतृत्व सीरिया और मिस्र कर रहे थे।
अरब देशों ने इज़राइल के पश्चिमी सहयोगियों को तेल की सप्लाई में कटौती कर दी थी। इससे तेल की काफ़ी कमी हो गई थी और ग्लोबल वेस्ट में गैस की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई थी।
1973 के गैस संकट के ठीक छह साल बाद, ईरानी क्रांति खत्म होने के कुछ महीनों बाद एक और ऊर्जा संकट आ गया। नई ईरानी सरकार ने तेल निर्यात नीति को बदलने में तेजी दिखाई।
1973 के संकट की तरह ही, विदेशी तेल पर निर्भर होना संयुक्त राज्य अमेरिका की इस बड़ी मुसीबत की वजह बना। नई ईरानी सरकार ने अपने तेल निर्यात की मात्रा और फ्रिक्वेंसी में भारी कटौती की, जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ-साथ अन्य पश्चिमी देशों में क़ीमतें बढ़ीं और तेल की कमी हुई।
1980 का "खोया हुआ दशक" एक अंतरराष्ट्रीय कर्ज संकट था, जिसने कई लैटिन अमेरिकी देशों को त्रस्त कर दिया था। अंतर्राष्ट्रीय ऋणदाता और निवेशकों से उधार लिए गए पैसे पर भारी गिरावट और जबरन ब्याज दरों के कारण ब्राज़ील और मैक्सिको जैसे देश साल-दर-साल भारी घाटे में पड़ते रहे। इससे उनका सालाना कर्ज भुगतान उनकी जीडीपी से भी ज़्यादा हो गया।
ब्राजील, मैक्सिको और रूस में इकॉनोमिक कोलैप्स के बाद पहले से ही अस्थिर अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था हाशिए पर आ गई। यह सभी अर्जेंटीना के खास कारोबारी हिस्सेदार हैं।
अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था चरमराने की वजह से इस देश को कुछ साल तक भारी गरीबी देखने को मिली। मंदी के चरम पर, अर्जेंटीना की बेरोजगारी दर लगभग 20% थी। कुछ अनुमानों से पता चलता है कि 50% से अधिक अर्जेंटीनावासी गरीबी रेखा से नीचे चले गए थे।
2008 का हाउसिंग मार्केट क्रैश 21वीं सदी का अब तक का सबसे खराब फाइनेंसियल क्राइसिस माना जाता है। इसके बाद के सालों में, इसने ग्लोबल इकोनोमी में विनाशकारी लहर पैदा कर दी थी।
अमेरिका के हाउसिंग मार्केट के क्रैश हो जाने की वजह से दुनिया के कुछ सबसे बड़े और मजबूत फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन, जो घर खरीदने के लोन से मुनाफ़ा कमा रहा थे, तबाह हो गए। जिसकी वजह से लगभग 1 करोड़ अमेरिकियों ने अरबों डॉलर की आय के साथ-साथ अपने घर भी खो दिए।
2008 के ग्लोबल मार्केट क्रैश ने ग्रीस पर दूसरे यूरोपीय देशों की तुलना में ज़्यादा असर डाला। 2009 तक, ग्रीस दूसरे यूरोपीय देशों के कर्ज़ में दब गया था, जिससे आर्थिक और सामाजिक संकट पैदा हो गया था, जिससे ग्रीस अभी तक नहीं उबर पाया है।
Sources: (Stacker) (Insider)
जब दुनिया का निकल गया था दिवाला
वो इकोनोमिक कोलेप्स जिसने दुनिया को बदल दिया
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जब तक मार्केट रहेगी, तब तक मार्केट में मंदी आती रहेगी। कभी कोई जंग शुरू होने पर, कभी जंग ख़त्म होने पर या लोन चुकता न कर पाने की स्थिति में और कभी-कभी यूँही बिना किसी वजह के इकोनोमिक रिसेशन (आर्थिक मंदी) दुनिया को अपनी चपेट में लेता रहा है। ऐसा अक्सर होता रहा है और आगे भी होता रहेगा। कुछ मंदी इतनी छोटी थीं कि उन्हें भूलना आसान था, लेकिन कुछ ऐसी थीं जिन्होंने दुनिया को बदल कर रख दिया था, जैसे द ग्रेट डिप्रेशन या 2008 का मार्केट क्रैश।
दुनिया के इतिहास की सबसे भयावह आर्थिक मंदियों के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें।